प्रश्न‒अन्तसमयमें कोई अपने पुत्र
आदिके रूपमें भी ‘नारायण’,
‘वासुदेव’ आदि नाम लेता है तो उसको भगवान् अपना ही नाम मान लेते
हैं; ऐसा क्यों ?
उत्तर‒भगवान् बहुत दयालु हैं ।
उन्होंने यह विशेष छूट दी है कि अगर मनुष्य अन्तसमयमें किसी भी बहाने भगवान्का
नाम ले ले, उनको याद कर ले तो उसका कल्याण हो जायगा । ......तात्पर्य है कि मनुष्यको
रात-दिन, खाते-पीते,
सोते-जागते, चलते-फिरते, सब समय भगवान्का नाम लेते
ही रहना चाहिये । ‒‘मूर्ति-पूजा और नाम-जपकी महिमा’ पुस्तकसे
वासुदेवपरा वेदा वासुदेवपरा मखाः
वासुदेवपरा योगा वासुदेवपरा
क्रियाः
वासुदेवपरं ज्ञानं वासुदेवपरं तपः
वासुदेवपरो धर्मों वासुदेवपरा गतिः
…….
अर्थ शास्त्रो मे ज्ञान का परम
उद्देश भगवान श्री कृष्ण है । यज्ञ करने का उद्देश उन्हे ही प्रसन करना है । योग
उन्ही के साक्षात्कार के लिए है । सारे सकाम कर्म उन्ही के द्वारा पुरस्कृत होते
है । वे परम ज्ञान है ओर सारी कठिन त्पस्याय उन्ही को जानने के लिए की जाती है ।
उनकी प्रेमपूर्ण सेवा करना ही धर्म है । वे ही जीवन के चरम लक्ष्य है ।
------------- श्री मद भागवतम , २ -२९"
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