Saturday, 31 October 2015

कृष्णम् वंदे जगद्गुरुम्

कृष्ण ही माँ है
               कृष्ण ही पिया है
कृष्ण ही दिया है
                कृष्ण ही मीत है
कृष्ण ही प्रीत है
                कृष्ण ही जीवन है
कृष्ण ही प्रकाश है
                कृष्ण ही जीवनज्योती हैै
कृष्ण ही सांस है
                कृष्ण ही आस है
कृष्ण ही प्यास हैै
                कृष्ण ही ज्ञान है
कृष्ण ही ससांर है
                  कृष्ण ही प्यार है
कृष्ण ही गीत है
                कृष्ण ही संगीत है
कृष्ण ही लहर है
                कृष्ण ही भीतर है
कृष्ण ही बाहर है
                कृष्ण ही बहार है
कृष्ण ही प्राण है
                 कृष्ण ही जान है
कृष्ण ही संबल है
                 कृष्ण ही आलंबन है
कृष्ण ही दर्पण है
                  कृष्ण ही धर्म है
कृष्ण ही कर्म है
                 कृष्ण ही मर्म है
कृष्ण ही नर्म है
                कृष्ण ही चमन है
कृष्ण ही मान है
                कृष्ण ही सम्मान है
कृष्ण ही प्राण है
                 कृष्ण ही जहान है
कृष्ण ही समाधान है
                  कृष्ण ही आराधना है
कृष्ण ही उपासना है
                    कृष्ण ही सगुन है
कृष्ण ही निर्गुण है
                    कृष्ण ही आदि है
कृष्ण ही अन्त हैै
                  कृष्ण ही अनन्त है
कृष्ण ही विलय है
                  कृष्ण ही प्रलय है
कृष्ण ही आधि है
                कृष्ण ही व्याधि है
कृष्ण ही समाधि है
                  कृष्ण ही जप है
कृष्ण ही तप है
              कृष्ण ही ताप है
कृष्ण ही यज्ञः है
                 कृष्ण ही हवन है
कृष्ण ही समिध है
                 कृष्ण ही समिधा है
कृष्ण ही आरती है
                 कृष्ण ही भजन है
कृष्ण ही भोजन है
                  कृष्ण ही साज है
कृष्ण ही वाद्य है
                 कृष्ण ही वन्दना है
कृष्ण ही आलाप है
                  कृष्ण ही प्यारा है
कृष्ण ही न्यारा है
                 कृष्ण ही दुलारा हैै
कृष्ण ही मनन है
                 कृष्ण ही चिंतन है
कृष्ण ही वंदन है
               कृष्ण ही चन्दन है
कृष्ण ही अभिनन्दन है
                कृष्ण ही नंदन है
कृष्ण ही गरिमा है
                कृष्ण ही महिमा है
कृष्ण ही चेतना है
                कृष्ण ही भावना है
कृष्ण ही गहना है
                 कृष्ण ही पाहुना है
कृष्ण ही अमृत है
                 कृष्ण ही खुशबू है
कृष्ण ही मंजिल है
                 कृष्ण ही सकल जहाँ है
कृष्ण समष्टि है
               कृष्ण ही व्यष्टि है
कृष्ण ही सृष्टी है
                कृष्ण  ही दृष्टि है
कृष्ण ही तृप्ति है
               कृष्ण  ही भाव है
कृष्ण ही प्रभाव है
                कृष्ण ही स्वभाव है
कृष्णस्तु भगवान स्वयं
 
 Զเधे Զเधे  Զเधे Զเधे

No comments:

Post a Comment