Monday, 2 November 2015

आज दरबार से ख़ाली नहीं जाऊँगी ! हे दयालु ! प्रसन्न हूजिये !

हम सब पर प्रभु कृपा करें ! मंगल ही मंगल हो !

हे कृपामय ! हे करूणा के महासागर प्रभु !
आपके चरणों पर सर रख कर प्रणाम करती हूँ !
आप प्रेम से दया से मेरे सिर पर हाथ फेरिये और अपनी सुखदायी नित्य निरंतर भक्ति का दान दीजिये !
भक्ति बिना आप प्रसन्न नहीं होते ! भक्ति से ही भक्तों के वश में हो जाते है !
जीवन की शाम ढलने से पहले ही भक्ति में सराबोर कर दीजिये !
भक्ति जीवन में आते सब्र संतोष व आनन्द की वर्षा हो जाती है !
पाप दोष सब मिट जाते हैं !
धन्य है भक्त ध्रुव व प्रह्लाद जिन पर बचपन में ही आपने महती कृपा कर भक्ति रस में डुबो दिया !
अब हमारे सब पापों को नज़र अँदाज करके हमें अपनी निश्चिल भक्ति व प्रीति का दान दीजिये !
आज दरबार से ख़ाली नहीं जाऊँगी ! हे दयालु ! प्रसन्न हूजिये !

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