भगवद्गीता गीता में कहा गया है कि यदि कोई भक्त भगवान् को पत्ती या थोड़ा जल भी अर्पित करे तो वे प्रसन्न हो जाते हैं ।
भगवान् द्वारा बताया गया यह सूत्र निर्धन से निर्धन व्यक्ति पर लागू होता है।
किन्तु इसका अर्थ यह नहीं कि जिनके पास पर्याप्त साधन हों वह भी इसी विधि को अपनाए और भगवान् को जल तथा पत्ती अर्पित करके उन्हें प्रसन्न करने का प्रयत्न करे। यदि उसके पास पर्याप्त साधन हों तो उसे अच्छे अच्छे अलंकरण, उत्तम फूल तथा भोज्य सामग्री अर्पित करनी चाहिए और सारे उत्सव मनाने चाहिए ।
ऐसा नहीं है कि वह अपनी इन्द्रियतृप्ति के लिए अपना सारा
धन व्यय कर दे और भगवान् को प्रसन्न करने के लिए थोड़ा जल तथा पत्ती अर्पित
करे ।
कृष्ण को पहले अर्पित किये बिना कोई भी भोज्य पदार्थ नही खाना चाहिए ।
ऋतु के अनुसार कृष्ण को ताजे फल तथा अन्न अर्पित करने से चूकना नहीं चाहिए ।
भोजन बन जाने के बाद, जब तक उसे अर्चाविग्रह को अर्पित न कर दिया जाए तब तक उसे किसी को नही देना चाहिए ।
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