॥जय गौर हरि॥
प्रभु कहते हैं:- यहाँ कोई किसी का
नहीं है !ना कोई किसी का भाई है, ना
कोई किसी की बहन, ना कोई किसी का पिता है, ना कोई किसी का पुत्र, ये सब रिश्ते नाते, ये
ममता, मोह के बंधन, ये शत्रुता के बंधन, ये सब माया का द्रष्टि भ्रम है ! अपने पूर्व जन्मो के अनुसार नये-नये रिश्ते
नये-बंधन बनते और बिगड़ते रहते हैं ! सदा केवल रहता है सत्य और भगवान
इसलिए भगवान का एक नाम सत्य नारायण भी है.........
पितासि लोकस्य चराचरस्य
त्वमस्य पुज्यश्च गुरुर्गरीयीन्।
न त्वत्समो स्त्यभ्यधिकः कुतोन्यो-
लोकत्रयेप्यप्रतिमप्रभाव ।।
हे प्रभु तुम चराचर जगतके
जन्मस्थान हो।
हरिहरादि समस्त देवताओंमे परम
देवता हो...वेदोंकोभी पढानेवाले आदिगुरु तुम्ही हो।तुम अप्रतिम,अद्वितीय
हो।तेरेसे श्रेष्ठ कहना व्यर्थ हैं क्योंकी ये अनेक ब्रम्हाण्ड जिसमें हैं वो आकाश
तुमसे ही उत्पन्न हैं....तब तुम्हारे जैसा कोई और हो ये कहनेमें लज्जा आती
हैं।तुम्हारेसे अधिक कोई नही क्योंकी तुम्ही एक हो।
मंदिरमें भगवानके सामने किसीको भी
प्रणाम करना भगवानका अपमान हैं।
जय श्री कृष्ण .
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