मल्लानामशनिर्नृणां नरवरः
स्त्रीणां स्मरो मूर्तिमान्
गोपानां स्वजनोऽसतां क्षितिभुजां
शास्ता स्वपित्रोः शिशुः।
मृत्युर्भोजपतेर्विराडविदुषां
तत्त्वं परं योगिनाम्
वृष्णीनां परदेवतेति विदितो रङ्गं
गतः साग्रजः॥१७॥
—श्रीमद्भागवते दशमस्कन्धे त्रिचत्वारिंशोऽध्यायः
For
the wrestlers, lightning; for the men, the best among men; for the women, the
most handsome man; for all the Gopas, their relative; for all the bad men and
kings, a punisher; for His parents, a child; for the King of Bhojas (Kamsa),
Death; for the unintelligent, a helpless weakling; the Supreme Truth, for the
Yogis; for the Vrishnis, the Supreme God; thus [Krishna was] understood, as He
entered the arena with His Brother.
वासुदेवपरा वेदा वासुदेवपरा मखाः
वासुदेवपरा योगा वासुदेवपरा
क्रियाः
वासुदेवपरं ज्ञानं वासुदेवपरं तपः
वासुदेवपरो धर्मों वासुदेवपरा गतिः
…….
अर्थ शास्त्रो मे ज्ञान का परम
उद्देश भगवान श्री कृष्ण है । यज्ञ करने का उद्देश उन्हे ही प्रसन करना है । योग
उन्ही के साक्षात्कार के लिए है । सारे सकाम कर्म उन्ही के द्वारा पुरस्कृत होते
है । वे परम ज्ञान है ओर सारी कठिन त्पस्याय उन्ही को जानने के लिए की जाती है ।
उनकी प्रेमपूर्ण सेवा करना ही धर्म है । वे ही जीवन के चरम लक्ष्य है ।
------------- श्री मद भागवतम , २ -२९"
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