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भगवान् श्री कृष्ण का प्रेम पा कर मनुष्य सारी बाह्य वस्तुओं
को भूल जाता है। जगत का ख्याल उसे नहीं रहता,यहाँ तक कि सब से प्रिय
अपने शरीर को भी भूल जाता है। जब ऐसी अवस्था आवे तब समझना चाहिए कि प्रेम प्राप्त
हुआ ।"
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क्या आपको 'कृष्ण' का
अर्थ मालूम है? वह जो प्रत्येक व्यक्ति और वस्तु को अपनी और आकर्षित करता है, कृष्ण
है| ऐसा आकर्षण जो रोका ही न जा सके! पूरा भागवत यह बताता है कि कृष्ण कितने
मंत्रमुग्ध कर देने वाले थे| जब वे रथ में बैठ कर गलियों से गुजरते थे तो लोग
मूर्ति की तरह स्तब्ध हो कर उन्हें निहारते रह जाते थे... उनके निकल जाने के बाद
भी वे बस वहां खड़े रह जाते थे... गोपियाँ कहती 'जाते जाते वे मेरी नज़रे ही
ले गए...'| यानी, ऐसे स्थिति,
जब दर्शक और दृश्य एक हो जाए..|
ऐसे बहुत से वृत्तांत हैं... एक
गोपी, जो श्रृंगार कर रही थी; कृष्ण के आने की खबर सुनकर, एक
ही आंख में प्रसाधन लगे हुए उन्हें देखने दौड़ पड़ी.. दिव्यता अत्यंत आकर्षक है..
(ताकि) हमारा मन तुच्छ बन्धनों से ऊपर उठ सके.. इसीलिए इसे 'मोहन' कहा
गया है; मोहन ह्रदय को आकर्षित करता है, मोहित करता है और प्रीति से
भर देता है...|
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