भगवान श्रीकृष्ण समस्त जगत के गुरु
हैँ "कृष्णं वन्दे जगतगुरुम् " वे प्रत्येक प्राणी के सर्वाधिक उपास्य
गुरुदेव हैँ।
उनके चरणोँ से निकलने वाला गंगाजल
तीनोँ लोकोँ को पावन करता है । समस्त योग्य ब्राह्मण उनकी उपासना करते हैँ , अतएव
उन्हेँ ब्रह्मण्यदेव कहा जाता है ।
ब्रह्मण्य का अर्थ है - वह व्यक्ति
जिसमेँ समस्त ब्राह्मोचित गुण होते हैँ ।
ये गुण हैँ - सत्यवादिता , आत्मसंयम
, शुचिता ,
इन्द्रियोँ पर प्रभुत्व , सरलता , व्यावहारिक
उपभोग के द्वारा पूर्ण ज्ञान तथा भक्ति - सेवा मेँ संलग्न होना ।
भगवान श्रीकृष्ण मेँ स्वयं ये
समस्त गुण हैँ तथा जिन लोगोँ मेँ ये गुण होते हैँ , वे उनकी उपासना करते हैँ ।
भगवान श्रीकृष्ण के लाखोँ करोड़ो
नाम हैँ विष्णुसहस्र नाम एवँ गोपालसहस्रनाम मेँ सभी नाम उनके दिव्य गुणोँ को
प्रकाशित करते हैँ ।।
एकोsपि कृष्णस्य कृतः प्रणामो
दशाश्वमेधवभृथेन तुल्यः l
दशाश्वमेधी पुनरेति जन्म , कृष्णप्रणामी
न पुनर्भवाय l l
एक बार भी श्रीकृष्ण भगवान् को
किया हुआ प्रणाम दस अश्वमेध यज्ञों के अवभृथ - स्नान के सामान होता है l
इतना ही नहीं दस अश्वमेध यज्ञ
करनेंवाला तो उसके फल को भोगकर पुनः जन्म को प्राप्त होता है , किन्तु
भगवान् श्रीकृष्ण को प्रणाम करनेवाला पुनः संसार में नहीं आता l
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