1 ... प्रार्थना -प्रातः काल आँख खुलने पर
..... कर दर्शन करो और भगवान की प्रार्थना करो ...
... कराग्रे वसते लक्ष्मी , करमूले सरस्वती ।
करमध्ये तु गोविन्दः , प्रभाते कर दर्शनम् ।।
... परन्तु आजकल प्रभात मे कप दर्शन होने लगा ...
....प्रातः काल उठकर कर दर्शन करो अर्थात् मन मेँ विचार करो कि आज मै इन हाथो से सत्कर्म ही करुँगा ताकि परमात्मा मेरे घर पधारने की कृपा करेँ ...
.... हाथ क्रिया शक्ति का प्रतीक है,,,,
.,,,.... भगवान से प्रार्थना करो कि जिसप्रकार आपने अर्जुन का रथ हाँका था उसी प्रकार आप मेरे जीवन रथ के सारथी बनेँ ..
..... कर दर्शन करो और भगवान की प्रार्थना करो ...
... कराग्रे वसते लक्ष्मी , करमूले सरस्वती ।
करमध्ये तु गोविन्दः , प्रभाते कर दर्शनम् ।।
... परन्तु आजकल प्रभात मे कप दर्शन होने लगा ...
....प्रातः काल उठकर कर दर्शन करो अर्थात् मन मेँ विचार करो कि आज मै इन हाथो से सत्कर्म ही करुँगा ताकि परमात्मा मेरे घर पधारने की कृपा करेँ ...
.... हाथ क्रिया शक्ति का प्रतीक है,,,,
.,,,.... भगवान से प्रार्थना करो कि जिसप्रकार आपने अर्जुन का रथ हाँका था उसी प्रकार आप मेरे जीवन रथ के सारथी बनेँ ..
फिर नवग्रहोँ का ध्यान करेँ ...
"ब्रह्मामुरारिस्त्रिपुरान्तका रीभानु:शशिभूमिसुतोबुधश्च, गुरुश्च शुक्र: शनि राहू केतव: कुर्वन्तु सर्वे मम ।"
तब नासिका के पास हाथ ले जाकर देखे यदि दायाँ स्वर चल रहा हो दायाँ पैर , बायाँ स्वर चल रहा हो तो बायाँ पैर धरती पर रखे , पैर रखने से पूर्व प्रार्थना करेँ .......
"समुद्र वसने देवि, पर्वतस्तनमण्डले, विष्णुपत्नि नमस्तुभ्यं पादस्पर्शं क्षमस्व मे."
माता पिता एवं गुरुजनोँ को प्रणाम करेँ । नित्य क्रिया से (शौचादि )पहले बोले ......
"उत्तिष्ठन्तु सुरा: सर्वेयक्षगन्धर्व किन्नरा,। पिशाचा गुह्यकाश्चैव मलमूत्र करोम्यहं ।।."
निवृत्त होकर दातुन करते समय प्रार्थना करेँ ......
"हे जिह्वे रस सारज्ञे, सर्वदा मधुरप्रिये, नारायणाख्य पीयूषम् पिव जिह्वे निरन्तरं."।
"आयुर्बलं यशो वर्च: प्रजा पशुवसूनि च, ।
ब्रह्म प्रज्ञाम् च मेघाम् च त्वम् नो देहि वनस्पते. ।।"
2 .सेवा पूजा - स्नान से पूर्व जल मे गंगादि का आवाहन करने हेतु पढ़े ...
"गंगे च यमुने चैव गोदावरी सरस्वती ,।
नर्मदे सिन्धु कावेरी जलेऽस्मिन सन्निधिँ कुरु ।।"
फिर निम्न मंत्रो को बोलते हुए स्नान करेँ .....
"अतिनीलघनश्यामं नालिनायतलोचनम्, ।
स्मरामि पुण्डरीकाक्षं तेन स्नातो भवाम्यहम्. ।।
स्नानादि से निवृत्त होकर एकान्त मे भगवान की सेवा पूजा करने के लिए मानसिक शुद्धि के लिए निम्न मन्त्रोँ द्वारा अपने ऊपर छल छिड़के .,..... ..
"ॐ अपवित्र: पवित्रो वा सर्वावस्थांगतोऽपि वा, य: स्मरेत् पुण्डरीकाक्षं स बाह्याभ्यंतर: शुचिः ।".
निम्न मंत्रो को पढ़ते हुए शिखा बन्धन करेँ .......
"चिद्रूपिणि ! महामाये ! दिव्यतेज:समन्विते, ।
तिष्ठ देवि ! शिखामध्ये तेजो वृद्धिम् कुरुष्व में. ।।
चन्दन लगायेँ
"चन्दनस्य महत्पुण्यं पवित्रं पापनाशनम् ।
आपदां हरते नित्यं लक्ष्मी तिष्ठति सर्वदा ।।"
3 .स्तुति - भगवान की स्तुति करेँ .,.,,,
" शान्ताकारं भुजगशयनं पद्मनाभं सुरेशं , विश्वाधारं गगन सदृशं मेघवर्णँ शुभाङ्गं ।
लक्ष्मीकांतं कमलनयनं योगिर्भिध्यानगम्यं , वन्दे विष्णुं भवभयहरं सर्वलोकैकनाथम्।।"
हे नाथ आपने जब अजामिल जैसे पापी का उद्धार कर दिया तो फिर आप मेरी ओर क्यो नहीँ देखते ?
4 ..कीर्तन - स्तुति के बाद एकान्त मेँ बैठकर प्रभु के नाम का कीर्तन करो ....
श्रीकृष्ण गोविन्द हरे मुरारे .... हे नाथ नारायण वासुदेव ...
.,......अपना कामकाज करते समय भी प्रभु का स्मरण करते रहो ,,,
5. कथा श्रवण - प्रभु के प्यारे संतो का समागम करो , उनके श्रीमुख से कथा श्रवण करो , हो सके तो रोज कथा सुनो .
यदि नही सुन सकते समयाभाव मेँ , तो रामायण , भागवत की कथा का वाचन करो ।
प्रेम पूर्वक उसका पाठ करो ।
6 . स्मरण - समस्त कर्मो का समर्पण - रात को सोने से पहले किये हुए कर्मो का विचार करो कि, क्या प्रभु को पसन्द आएँ ऐसे कर्म मेरे हाथ से आज हुए है ।
यदि अन्दर से नकारात्मक उत्तर मिले , तो मान लेना कि वह दिन जीते हुए नही मरते हुए निकल गया । अतः क्षमा प्रार्थना करेँ.,,
"अपराध सहस्राणि क्रियन्ते अर्हनिशं मया ।
दासोऽयमिति मां मत्वा क्षमस्व परमेश्वर ।।
"ब्रह्मामुरारिस्त्रिपुरान्तका
तब नासिका के पास हाथ ले जाकर देखे यदि दायाँ स्वर चल रहा हो दायाँ पैर , बायाँ स्वर चल रहा हो तो बायाँ पैर धरती पर रखे , पैर रखने से पूर्व प्रार्थना करेँ .......
"समुद्र वसने देवि, पर्वतस्तनमण्डले, विष्णुपत्नि नमस्तुभ्यं पादस्पर्शं क्षमस्व मे."
माता पिता एवं गुरुजनोँ को प्रणाम करेँ । नित्य क्रिया से (शौचादि )पहले बोले ......
"उत्तिष्ठन्तु सुरा: सर्वेयक्षगन्धर्व किन्नरा,। पिशाचा गुह्यकाश्चैव मलमूत्र करोम्यहं ।।."
निवृत्त होकर दातुन करते समय प्रार्थना करेँ ......
"हे जिह्वे रस सारज्ञे, सर्वदा मधुरप्रिये, नारायणाख्य पीयूषम् पिव जिह्वे निरन्तरं."।
"आयुर्बलं यशो वर्च: प्रजा पशुवसूनि च, ।
ब्रह्म प्रज्ञाम् च मेघाम् च त्वम् नो देहि वनस्पते. ।।"
2 .सेवा पूजा - स्नान से पूर्व जल मे गंगादि का आवाहन करने हेतु पढ़े ...
"गंगे च यमुने चैव गोदावरी सरस्वती ,।
नर्मदे सिन्धु कावेरी जलेऽस्मिन सन्निधिँ कुरु ।।"
फिर निम्न मंत्रो को बोलते हुए स्नान करेँ .....
"अतिनीलघनश्यामं नालिनायतलोचनम्, ।
स्मरामि पुण्डरीकाक्षं तेन स्नातो भवाम्यहम्. ।।
स्नानादि से निवृत्त होकर एकान्त मे भगवान की सेवा पूजा करने के लिए मानसिक शुद्धि के लिए निम्न मन्त्रोँ द्वारा अपने ऊपर छल छिड़के .,..... ..
"ॐ अपवित्र: पवित्रो वा सर्वावस्थांगतोऽपि वा, य: स्मरेत् पुण्डरीकाक्षं स बाह्याभ्यंतर: शुचिः ।".
निम्न मंत्रो को पढ़ते हुए शिखा बन्धन करेँ .......
"चिद्रूपिणि ! महामाये ! दिव्यतेज:समन्विते, ।
तिष्ठ देवि ! शिखामध्ये तेजो वृद्धिम् कुरुष्व में. ।।
चन्दन लगायेँ
"चन्दनस्य महत्पुण्यं पवित्रं पापनाशनम् ।
आपदां हरते नित्यं लक्ष्मी तिष्ठति सर्वदा ।।"
3 .स्तुति - भगवान की स्तुति करेँ .,.,,,
" शान्ताकारं भुजगशयनं पद्मनाभं सुरेशं , विश्वाधारं गगन सदृशं मेघवर्णँ शुभाङ्गं ।
लक्ष्मीकांतं कमलनयनं योगिर्भिध्यानगम्यं , वन्दे विष्णुं भवभयहरं सर्वलोकैकनाथम्।।"
हे नाथ आपने जब अजामिल जैसे पापी का उद्धार कर दिया तो फिर आप मेरी ओर क्यो नहीँ देखते ?
4 ..कीर्तन - स्तुति के बाद एकान्त मेँ बैठकर प्रभु के नाम का कीर्तन करो ....
श्रीकृष्ण गोविन्द हरे मुरारे .... हे नाथ नारायण वासुदेव ...
.,......अपना कामकाज करते समय भी प्रभु का स्मरण करते रहो ,,,
5. कथा श्रवण - प्रभु के प्यारे संतो का समागम करो , उनके श्रीमुख से कथा श्रवण करो , हो सके तो रोज कथा सुनो .
यदि नही सुन सकते समयाभाव मेँ , तो रामायण , भागवत की कथा का वाचन करो ।
प्रेम पूर्वक उसका पाठ करो ।
6 . स्मरण - समस्त कर्मो का समर्पण - रात को सोने से पहले किये हुए कर्मो का विचार करो कि, क्या प्रभु को पसन्द आएँ ऐसे कर्म मेरे हाथ से आज हुए है ।
यदि अन्दर से नकारात्मक उत्तर मिले , तो मान लेना कि वह दिन जीते हुए नही मरते हुए निकल गया । अतः क्षमा प्रार्थना करेँ.,,
"अपराध सहस्राणि क्रियन्ते अर्हनिशं मया ।
दासोऽयमिति मां मत्वा क्षमस्व परमेश्वर ।।
.,,.... यदि कोई पाप हो जाय तो प्रायश्चि करो , और किए हुए सभी कर्म को परमात्मा को अर्पित करो ...
" अनेन कर्मणा श्रीलक्ष्मीनारायण प्रीयतां न मम् ।।
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