श्रीकृष्णाय वयन्नुम:
भगवान् कृष्ण की महिमा
सच्चिदानन्दरूपाय
स्थित्युत्पत्त्यादिहेतवे।
तापत्रयविनाशाय श्रीकृष्णाय
वयन्नुम:।।
भले लोगों को शरण देने वाले, सत्, चित्
और आनन्द स्वरूप,
संसार के सृजन, पालन और संहार के कारण, और
आधिदैविक, आधिभौतिक और आध्यात्मिक तीनों तापों को दूर करनेवाले भगवान् कृष्ण को हम
लोग प्रणाम करते हैं।
मनुष्य जाति के इतिहास में जितने पुरुषों की
कथा संसार में विदित है, उनमें सबसे बड़े भगवान् कृष्ण हुए हैं। मनुष्य की
शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक शक्तियों का जितना ऊँचा विकास उनमें हुआ, उतना
किसी दूसरे पुरुष में नहीं हुआ। जैसे विमल ज्ञान और जैसी सात्त्विक नीति का
उन्होंने उपदेश किया, वैसा किसी और ने नहीं किया। उनकी महिमा के विषय में
मैंने अपना सब अभिप्राय दो श्लोकों में लिख दिया है-
सत्यव्रतौ महात्मानौ भीष्मव्यासौ
सुविश्रुतौ।
उभाभ्याम्पूजित: कृष्ण:
साक्षाद्विष्णुरिति ह्यलम्।
माहात्म्यं वासुदेवस्य
हरेरद्भुतकर्मण:।
तमेव शरणं गच्छ
यदिश्रेयोऽभिवाञ्छसि।
अर्थात् जिन भगवान् कृष्ण ने अपने प्रकट
होने के समय से अन्तर्धान होने के समय तक साधुओं की रक्षा, दुष्टों
का दमन, पाप और धर्म की स्थापना आदि अनेक अद्भुत कर्म किए, उनका
माहात्म्य केवल इसी बात से भलीभाँति विदित है कि महाभारत के रचयिता श्री वेदव्यास
और भीष्म पितामह,
जिनका सत्य का व्रत प्रसिद्ध है और जो दोनों कृष्ण के समकालीन
थे, और इसलिये जो उनके गुणों से भलीभाँति परिचित थे, दोनों
ही महात्माओं ने भगवान् कृष्ण को साक्षात् विष्णु मानकर पूजा है।
‘सनातनधर्म’ सप्ताहिक वर्ष २, अंक
७, ३० अगस्त १९३४
No comments:
Post a Comment