॥जय गौर हरि॥
तव कथामृतं तप्तजीवनं कविभिरीडितं
कल्मषापहम् ।
श्रवणमङ्गलं श्रीमदाततं भुवि
गृणन्ति ते भूरिदा जनाः॥
हे प्रभो ! तुम्हारी लीला कथा भी
अमृत स्वरूप है । विरह से सताए हुये लोगों के लिए तो वह सर्वस्व जीवन ही है। बड़े
बड़े ज्ञानी महात्माओं - भक्तकवियों ने उसका गान किया है, वह
सारे पाप - ताप तो मिटाती ही है, साथ ही श्रवण मात्र से परम मंगल - परम कल्याण का दान
भी करती है । वह परम सुन्दर, परम मधुर और बहुत विस्तृत भी है । जो तुम्हारी उस
लीलाकथा का गान करते हैं, वास्तव में भू-लोक में वे ही सबसे बड़े दाता हैं।।
नारायण जिनके हिरदय में सो कछु करम
करे न करे रे ..
पारस मणि जिनके घर माहीं सो धन
संचि धरे न धरे .
सूरज को परकाश भयो जब दीपक जोत जले
न जले रे ..
नाव मिली जिनको जल अंदर बाहु से
नीर तरे न तरे रे .
ब्रह्मानंद जाहि घट अंतर काशी में
जाये मरे न मरे रे
॥श्री राधारमणाय समर्पणं॥
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