गोपी भाव
गोपिया कहती है- " कि हमारे
पति लोग धूर्त है..जो श्री कृष्ण को नहीं पा सके ।
एक तो ये अर्थ है दूसरा अर्थ ये
है..कि जैसा तू धूर्त है वैसी ही हम धूर्त है...जो तेरी शरण में आई है ।हम
धूर्त है क्योंकि हम सब छोड़ के तेरे पास आई...कृष्ण धूर्त कैसे हैं ?? इस
पर कहती हैं...हे कृष्ण ! तुम माखन चोर हो माखन चोर
ही नहीं.. तुमचित चोर भी हो..चित चोर ही नहीं,,
पाप चोर भी हो..भक्तों के पाप चुरा लेते हो.. और पता नहीं तुम क्या-क्या हो ?? और चोरी बिना धूर्तता के नहीं होती इसलिए तुम धूर्त हो । सबसे बड़े चोर रोज रोज माखन खा जाते थे ,गोपियों का तो.. गोपियों ने पंचायत बुलाई... तो
एक गोपी बोली मेरा भी नाम नहीं अगर कृष्ण को पकड के नहीं दिखाया....कई दिनों तक पीछा करती रही ।
पाप चोर भी हो..भक्तों के पाप चुरा लेते हो.. और पता नहीं तुम क्या-क्या हो ?? और चोरी बिना धूर्तता के नहीं होती इसलिए तुम धूर्त हो । सबसे बड़े चोर रोज रोज माखन खा जाते थे ,गोपियों का तो.. गोपियों ने पंचायत बुलाई... तो
एक गोपी बोली मेरा भी नाम नहीं अगर कृष्ण को पकड के नहीं दिखाया....कई दिनों तक पीछा करती रही ।
और एक दिन दांव लगा, भीतर
घुस करके पहले तो श्री कृष्ण ने दही खाया ।बड़ा मीठा- मीठा
!...फिर माखन खाने लगे..तो बस उसी समय पकड़ ली उनकी
और कहा अब तो मानो चोर हो ।गोपाल सहस्रनाम में पार्वती जी से शिवजी कहते है कि हे देवी हमारा इष्ट कौन है ??जो कामनी लम्पट है... और सब
से ऊँचा चोर है...ऐसा कोई और चोर नहीं हुआ !!
राधे राधे
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