राधे राधे ,,,
हमारे
श्री ठाकुर जी भगवान श्री कृष्ण जी की महानता के ये गुण ,देखिये
,पढ़िए ,गुनिये ,,,,,
१- हृदय की प्रसन्नता: जिसका हृदय
जितना प्रसन्न, वह उतना ज्यादा महान होता है । जैसे- श्रीकृष्ण प्रसन्नता की पराकाष्ठा पर
हैं । ॠषि का शाप मिला है, यदुवंशी आपस में ही लड़कर मार काट मचा रहे हैं, नष्ट
हो रहे हैं, फिर भी श्रीकृष्ण की बंसी बज रही हैं…
२=उदारता: श्रीकृष्ण प्रतिदिन
सहस्रों गायों का दान करते थे । कुछ न कुछ देते थे । धन और योग्यता तो कईयों के
पास होती है, लेकिन देने का सामर्थ्य सबके पास नहीं होता । जिसके पास जितनी उदारता होती
है, वह उतना ही महान होता है ।
३-नम्रता: श्रीकृष्ण नम्रता के धनी
थे । सुदामा के पैर धो रहे हैं श्रीकृष्ण ! जब उन्होंने देखा कि पैदल चलने से
सुदामा के पैरों में काँटें चुभ गये हैं, उन्हें निकालने के लिए
उन्होंने रुक्मिणीजी से सुई मँगवायी । सुई लाने में देर हो रही थी तो अपने दाँतों
से ही काँटें खींचकर निकाले और सुदामा के पैर धोये… कितनी नम्रता !.युधिष्ठिर
आते तो श्रीकृष्ण उठकर खड़े हो जाते थे । पांडवो के संधिदूत बनकर गये और वहाँ से
लौटे तब भी उन्होंने युधिष्ठिर को प्रणाम करते हुए कहा: “महाराज
! हमने तो कौरवों से संधि करने का प्रयत्न किया, किंतु हम विफल रहे |”ऐसे
तो चालबाज लोग और सेठ लोग भी नम्र दिखते हैं | परंतु केवल दिखावटी नम्रता
नहीं, हृदय की नम्रता होनी चाहिए । हृदय की नम्रता आपको महान बना देगी ।
४- समता: श्रीकृष्ण तो मानो, समता
की मूर्ति थे । महाभारत का इतना बड़ा युद्ध हुआ, फिर भी कहते हैं कि “कौरव-पांडवों
के युद्ध के समय यदि मेरे मन में पांडवों के प्रति राग न रहा हो और कौरवों के
प्रति द्वेष न रहा हो तो मेरी समता के परीक्षार्थ यह बालक जीवित हो जाय | और
बालक (परीक्षित) जीवित हो उठा.जय जय श्री राधे ..
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