इस प्रकार उन्होंने समझाया कि
हमारे ही लिये कृष्ण सबसे अधिक पूजा के योग्य नहीं हैं, बल्कि
ये महापुरुष तो तीनों लोकों से पूजा योग्य हैं।
मैंने बहुत से ज्ञान-वृद्ध पुरुषों
की सेवा की है और मैंने उनको इकट्ठा होकर श्रीकृष्ण के बहुत से गुणों का वर्णन
करते सुना है और कृष्ण ने जन्म से ही जो-जो अद्भुत कार्य किए हैं, उनको
भी मैंने बहुत बार लोगों को कहते सुना है।
हे शिशुपाल! हम कृष्ण की इसलिये
पूजा करते हैं कि वे पृथ्वी पर सब प्राणियों को सुख पहुँचाने वाले हैं और उनके यश
को, उनकी शूरवीरता को और उनकी जय को समझ करके सत्पुरुषों ने उनको पूजा है, इसलिये
हम उनकी पूजा करते हैं।
कृष्ण के पूजनीय होने के दोनों ही
कारण हैं, वेद-वेदांग का ज्ञान और सबसे अधिक बल। संसार में ऐसा कौन है जो कृष्ण के
समान गुण-सम्पन्न हो। इनमें दानशीलता है, निपुणता है, शास्त्र
का ज्ञान है, बल है, नम्रता है,
यश है, उत्तम बुद्धि है, विनय है, लक्ष्मी
है, धैर्य है,
सन्तोष है,हृष्टि-पुष्टि है।
ये सब गुण सदा केशव में पाए जाते
हैं। ये आचार्य,
पिता, गुरु, अर्घ पाने के योग्य, पूजे हुए और पूजा के योग्य, प्रजा-पालक
और लोक-प्रिय हैं। इसलिये हमने इनको पूजा के योग्य माना है।
इसी बात को धर्मराज युधिष्ठिर ने
भी कहा था-
यो वै कामान्न भयान्न लोभन्नान्यकारणात्।
अन्यायमनुवर्त्तेत स्थिरबुद्धिरलोलुप:।।
धर्मज्ञो धृतिमान्प्राज्ञ: सर्वभूतेषु केशव:।
ईश्वर: सर्वभूतानां देवदेव: सनातन:।।
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