भक्त प्रभु से सिर्फ यही चाहता है की प्रभु तेरी याद जीवन मे हमेशा बनी रहे--
संसार के सुखो की दूनिया चाहे लाख बार उजड जाये लेकिन प्रभु तुम अपने चरणो से जुदा मत करना-
भक्त कहते है की हमे ना ही संसारिक भोग चाहिये ओर ना ही संसारिक उपलब्धियां---
हमे सिर्फ एसा बना दीजिये की हम हर क्षण आपका चिंतन करते रहें ओर हमारे अंदर आपके दर्शन की लगन लगे ओर हम आपके विरह मे आंसु बहायें एसा हमे भाव दीजिये--
हमे दुख दे दीजिये क्योकि मनुष्य सुखो से आसक्ति करके प्रभु को भुल जाता है ईसलिए प्रभु हमे या तो दुख दे दीजिये ओर या फिर एसा भाव प्रदान कर दीजिये की सुख दुख मे हम आपको हमेशा याद करते रहें--
सच्चा भक्त तो वही होता है जो हर परिस्थिति मे प्रभु को याद रखता है-
भक्ति के आनंद मे भक्त ईतना उत्साहित रहता है की उसे पता ही नही चलता की कब सुख आया ओर कब दुख आया---
जिस तरह मर्सडिज की गाडी मे बैठकर सडक के गड्डे महसुस नही होते उसी प्रकार जो भक्ति की गाडी मे बैठ जायेगा उसे सुख दुख विचलित नही कर सकते--
प्रेमी भक्तजनो,,,एसा भाव जरुर जीवन मे आयेगा जब कथामृत जीवन मे उतरेगा--
कथा को जो पियेगा वही भगवान को प्राप्त करने के योग्य बनेगा--
अब हम कुंति प्रसंग की तरफ बढ रहे है-- कुंति ने बहुत प्यारी स्तुति गाई है--जब कृष्ण द्वारिका जा रहे थे तो कुंति ने रथ पकड लिया---
कृष्ण का नियम था की वे प्रतिदिन अपनी बुआ को प्रणाम करते थे-- ओर जब आज कृष्ण अपनी बुआ को प्रणाम करने के लिए रथ से नीचे उतरे तो आज कुंति ने प्रणाम किया--
कृष्ण बोले की अरी बुआ ये आप क्या कर रही हो?? मै आपका भतीजा हूं-
कुंति बोली की शरीर का रिश्ता तो बाद मे है लेकिन उससे पहले तेरा ओर मेरा जीव ओर परमात्मा का रिश्ता है--
हम सब जीव है ओर तु परमपिता परमात्मा---
कुंति ने बहूत प्यारी स्तुति गाई है--
कुंति ने कहा की--
नमस्ये पुरुषं त्वामीद्यश्वरं प्रकृते: परम्--अलक्ष्यं सर्वभुतानामन्तर्बहिरवदगथितम्--
ईस श्लोक मे कुंति ने कहा की पुरुषं त्वामीद्यश्वरं अर्थात् हे कृष्ण तुम आदि पुरुष हो --ओर प्रकृते परम् अर्थात् भौतिक गुणो से परे हो--
भगवान के अंदर सतोगुण रजोगुण तमोगुण नही होते--
भगवान गुणातीत होते है--
सर्वभुतानामन्तर्बहिवस्थितम् अर्थात् सब प्राणियो के अंदर ओर बाहर स्थित हो एसे कृष्ण आदि पुरुष को मै प्रणाम करती हूं---
कुंति ने कहा की प्रभु आप अपनी माया के पर्दे से ढके रहते हो--
जो मनुष्य उस माया के पर्दे को हटा देगा तो साक्षात् प्रभु का दर्शन पाता है ओर जो माया का दास बनता है वो कभी भी भगवद्प्राप्ति नही कर पाता-
कृष्णाय वासुदेवाय देवकीनन्दनाय च--
नन्दगोपकुमाराय गोविन्दाय नमो नम:--
मै उन भगवान को नमस्कार करती हूं जो वसुदेव के पुत्र ,देवकी के लाडले,नन्द के लाल ओर वृंदावन के अन्य ग्वालो ओर गौवो के प्राण बनकर आये है-- उसके बाद कुंति ने भगवान को कृपाएं याद दिलाई ओर कहा की हे कृष्ण तुमने उतनी कृपा तो अपनी मां देवकी पर भी नही की जितनी कृपा तुमने मुझपर की है--
देवकी के छह पुत्रो को कंस ने मार दिया ओर मेरे पुत्रो को तो आपने हर मुसिबत से बचाया है प्यारे----
जब - जब हमपर संकंट आया तब तब तुमने हमारी रक्षा की ओर जब अब हमे सुख प्राप्त हुआ तो तु हमे छोडकर जा रहा है--
गोविंद तुम एसा करो करो की मुझे दुख दे दो क्योकि दुख जीवन मे रहेगा तो तेरी याद ओर तु हमेशा हमारे पास रहेगा ईसलिए मुझे दुख दे दो गोविंद---
एसे सुख पर सिला पडे जो गोविंद नाम भुलाए---
बलिहारी उस दुख की जो गोविंद नाम रटाए--
कितनी प्यारी स्तुति गाई है कुंति माता ने--
प्रेमी भक्तो,, भगवान के प्रेमियो का धन तो सिर्फ भगवान का नाम ओर भगवान की कथाएं होती है ओर संसार के सुखो मे उनका मोह नही होता --
कुंति भगवान से दुख मांग रही है क्योकि कुंति भगवान से बहूत प्रेम करती है ओर प्रेमी भक्त हमेशा चाहता है की भगवान की याद हर क्षण जीवन मे बनी रहे---
भक्त माया से मोह नही रखते --
माया से मोह विनाश की तरफ लेकर जाता है-- -हे कृष्ण जो आपकी लीलाओ का निरन्तर श्रवण,कीर्तन ओर स्मरण करते है वे आपके चरणकमलो का दर्शन पाते है-- हम भी भगवान से प्रार्थना करें की प्रभु हमारे जीवन मे चाहे कैसा भी समय हो लेकिन आपकी याद हमेशा जीवन मे बनी रहे--
★कृपा तुम्हारी सबपर बनी रहे--
तेरे नाम की लहर दिल मे चली रहे---
भुलें ना तुझे एसी कृपा करना--
तेरे नाम की मस्ती जीवन मे चढी रहें-- ★- ईस प्रकार कुंति स्तुति सुनकर भगवान प्रसन्न हुए ओर कुंति को आशीर्वाद दिया की बुआ जीवन की हर परिस्थिति मे तुझे मेरा स्मरण हमेशा बना रहेगा---
उसके बाद भगवान एक दिन ओर हस्तिनापुर रुके---
कल भीष्म प्रसंग पर चर्चा करेंगे--
--श्री राधे, श्री हरिदास-
संसार के सुखो की दूनिया चाहे लाख बार उजड जाये लेकिन प्रभु तुम अपने चरणो से जुदा मत करना-
भक्त कहते है की हमे ना ही संसारिक भोग चाहिये ओर ना ही संसारिक उपलब्धियां---
हमे सिर्फ एसा बना दीजिये की हम हर क्षण आपका चिंतन करते रहें ओर हमारे अंदर आपके दर्शन की लगन लगे ओर हम आपके विरह मे आंसु बहायें एसा हमे भाव दीजिये--
हमे दुख दे दीजिये क्योकि मनुष्य सुखो से आसक्ति करके प्रभु को भुल जाता है ईसलिए प्रभु हमे या तो दुख दे दीजिये ओर या फिर एसा भाव प्रदान कर दीजिये की सुख दुख मे हम आपको हमेशा याद करते रहें--
सच्चा भक्त तो वही होता है जो हर परिस्थिति मे प्रभु को याद रखता है-
भक्ति के आनंद मे भक्त ईतना उत्साहित रहता है की उसे पता ही नही चलता की कब सुख आया ओर कब दुख आया---
जिस तरह मर्सडिज की गाडी मे बैठकर सडक के गड्डे महसुस नही होते उसी प्रकार जो भक्ति की गाडी मे बैठ जायेगा उसे सुख दुख विचलित नही कर सकते--
प्रेमी भक्तजनो,,,एसा भाव जरुर जीवन मे आयेगा जब कथामृत जीवन मे उतरेगा--
कथा को जो पियेगा वही भगवान को प्राप्त करने के योग्य बनेगा--
अब हम कुंति प्रसंग की तरफ बढ रहे है-- कुंति ने बहुत प्यारी स्तुति गाई है--जब कृष्ण द्वारिका जा रहे थे तो कुंति ने रथ पकड लिया---
कृष्ण का नियम था की वे प्रतिदिन अपनी बुआ को प्रणाम करते थे-- ओर जब आज कृष्ण अपनी बुआ को प्रणाम करने के लिए रथ से नीचे उतरे तो आज कुंति ने प्रणाम किया--
कृष्ण बोले की अरी बुआ ये आप क्या कर रही हो?? मै आपका भतीजा हूं-
कुंति बोली की शरीर का रिश्ता तो बाद मे है लेकिन उससे पहले तेरा ओर मेरा जीव ओर परमात्मा का रिश्ता है--
हम सब जीव है ओर तु परमपिता परमात्मा---
कुंति ने बहूत प्यारी स्तुति गाई है--
कुंति ने कहा की--
नमस्ये पुरुषं त्वामीद्यश्वरं प्रकृते: परम्--अलक्ष्यं सर्वभुतानामन्तर्बहिरवदगथितम्--
ईस श्लोक मे कुंति ने कहा की पुरुषं त्वामीद्यश्वरं अर्थात् हे कृष्ण तुम आदि पुरुष हो --ओर प्रकृते परम् अर्थात् भौतिक गुणो से परे हो--
भगवान के अंदर सतोगुण रजोगुण तमोगुण नही होते--
भगवान गुणातीत होते है--
सर्वभुतानामन्तर्बहिवस्थितम् अर्थात् सब प्राणियो के अंदर ओर बाहर स्थित हो एसे कृष्ण आदि पुरुष को मै प्रणाम करती हूं---
कुंति ने कहा की प्रभु आप अपनी माया के पर्दे से ढके रहते हो--
जो मनुष्य उस माया के पर्दे को हटा देगा तो साक्षात् प्रभु का दर्शन पाता है ओर जो माया का दास बनता है वो कभी भी भगवद्प्राप्ति नही कर पाता-
कृष्णाय वासुदेवाय देवकीनन्दनाय च--
नन्दगोपकुमाराय गोविन्दाय नमो नम:--
मै उन भगवान को नमस्कार करती हूं जो वसुदेव के पुत्र ,देवकी के लाडले,नन्द के लाल ओर वृंदावन के अन्य ग्वालो ओर गौवो के प्राण बनकर आये है-- उसके बाद कुंति ने भगवान को कृपाएं याद दिलाई ओर कहा की हे कृष्ण तुमने उतनी कृपा तो अपनी मां देवकी पर भी नही की जितनी कृपा तुमने मुझपर की है--
देवकी के छह पुत्रो को कंस ने मार दिया ओर मेरे पुत्रो को तो आपने हर मुसिबत से बचाया है प्यारे----
जब - जब हमपर संकंट आया तब तब तुमने हमारी रक्षा की ओर जब अब हमे सुख प्राप्त हुआ तो तु हमे छोडकर जा रहा है--
गोविंद तुम एसा करो करो की मुझे दुख दे दो क्योकि दुख जीवन मे रहेगा तो तेरी याद ओर तु हमेशा हमारे पास रहेगा ईसलिए मुझे दुख दे दो गोविंद---
एसे सुख पर सिला पडे जो गोविंद नाम भुलाए---
बलिहारी उस दुख की जो गोविंद नाम रटाए--
कितनी प्यारी स्तुति गाई है कुंति माता ने--
प्रेमी भक्तो,, भगवान के प्रेमियो का धन तो सिर्फ भगवान का नाम ओर भगवान की कथाएं होती है ओर संसार के सुखो मे उनका मोह नही होता --
कुंति भगवान से दुख मांग रही है क्योकि कुंति भगवान से बहूत प्रेम करती है ओर प्रेमी भक्त हमेशा चाहता है की भगवान की याद हर क्षण जीवन मे बनी रहे---
भक्त माया से मोह नही रखते --
माया से मोह विनाश की तरफ लेकर जाता है-- -हे कृष्ण जो आपकी लीलाओ का निरन्तर श्रवण,कीर्तन ओर स्मरण करते है वे आपके चरणकमलो का दर्शन पाते है-- हम भी भगवान से प्रार्थना करें की प्रभु हमारे जीवन मे चाहे कैसा भी समय हो लेकिन आपकी याद हमेशा जीवन मे बनी रहे--
★कृपा तुम्हारी सबपर बनी रहे--
तेरे नाम की लहर दिल मे चली रहे---
भुलें ना तुझे एसी कृपा करना--
तेरे नाम की मस्ती जीवन मे चढी रहें-- ★- ईस प्रकार कुंति स्तुति सुनकर भगवान प्रसन्न हुए ओर कुंति को आशीर्वाद दिया की बुआ जीवन की हर परिस्थिति मे तुझे मेरा स्मरण हमेशा बना रहेगा---
उसके बाद भगवान एक दिन ओर हस्तिनापुर रुके---
कल भीष्म प्रसंग पर चर्चा करेंगे--
--श्री राधे, श्री हरिदास-
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