चूंकि श्रीभगवान् एवं उनका नाम
दोनों अभिन्न हैं,
इसलिए श्रीनाम भी श्रीभगवान् के सवरूप की ही भांति मधुर है।श्री
नामाक्षर अप्राकृत चिन्मय हैं।
कृष्णनाम,कृष्णगुण, कृष्णलीलावृन्द
कृष्णेर स्वरूपसम सब चिदानंद"
(श्री.च.च.२/२७/१३०)
"श्रीकृष्ण नाम, श्रीकृष्ण
के गुण एवं श्रीकृष्ण की लीलाएं-यह तीनों श्री कृष्ण के सवरूप की ही भांति चिदानंद
सवरूप ही हैं।"
"नाम चिन्मय होने से नाम के
अक्षर समूह भी अप्राकृत व् चिन्मय ही हैं।"
याद रखो - किसी भी भय में इतनी
शक्ति नही है जो भगवत्कृपा की अपार शक्ति के सामने ठहर सके। किसी भी पाप में इतनी
शक्ति नही है जो भगवद्भक्ति के सामने टिक सके। किसी भी ताप में इतनी शक्ति नही है
जो भगवत्प्रेम की शीतलता के सामने रह सके। [कल्याण मार्च 2015]
भगवान् शिव माता पार्वती से ::- ''जो
लोग भगवान् श्री हरि के शरणागत होते हैं वे किसी से भी नहीं डरते l क्योंकि
उन्हें स्वर्ग,मोक्ष और नरकों में भी एक ही वास्तु के -- केवल भगवान् के ही सामान भाव से
दर्शन होते हैं l
'' ( श्रीमद्भागवत महापुराण ६/१७/२८ )
अनेक व्यक्ति साधना शब्दसे ही डर
जाते हैं जबकि कलियुगमें साधना अत्यधिक सरल है, मात्र उठते-बैठते ईश्वरका
स्मरण करना कलियुगकी सर्वोत्तम साधना है |
सावधान ! --- कलियुग मैं हरिनाम, हाँ
केवल हरिनाम, एकमात्र हरिनाम ही संसार-सागर से पार होने का सर्वोत्तम साधन है | इसके
सिवा इस काल में दूसरी कोई गति नही है, नही है, दूसरी
कोई गति है ही नही |
संत-वाणी संख्या १६३६, गीताप्रेस गोरखपुर
॥श्री राधारमणाय समर्पणं॥
No comments:
Post a Comment