आशा भरद्वाज जी के सकंलन में से
==हमारा मन इधर उधर बहुत जाता है।
कभी यह देवता ,कभी वह देवी की मन्नते
मांगते रहते हैं जबकि यह सभी देवी देवता बिहारी जी के ही अधीन हैं। भगवत गीता में
स्पष्ट है की जो देवी देवताओं को पूजता है वह उन के लोक में जाता है परन्तु जो
मुझे सीधा भजता है वह जीव मुझ को ही प्राप्त होता है।भला बिहारी जी से भी अधिक कोई
सुन्दर है? हम कोटि काम लावण्या बिहारीजी को छोड़ कर अन्य देवताओं के पीछे क्यूँ भागते
हैं ?
क्या इनके सुन्दर मुख दर्शन से भी
अधिक सुन्दर कोई और हो सकता है?
स्वामी श्री हरि दास जी कहते
हैं---हे बिहारी जी ! मेरी तो यह ही कामना है कि मैं आपके इस विचित्र मुख कमल के
दर्शन सदा करता रहूँ।,,.......
कुंजबिहारी श्री हरिदास
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