प्रभु की शरणागति का अभिप्राय अपनी सारी चिन्ता को छोड़कर भजन करने से है l
अपने पुरुषार्थ को नहीं छोड़ना चाहिए l
मुख्यतः पंचम् पुरुषार्थ प्रेम को जीवन में लाना चाहिए क्योकि हम सब साक्षात् प्रभु का अंश है
और प्रेम हमारा स्वरूप् है l
जब तक यह हम अपने अंशी भगवान का आश्रय नहीं लेगे तब तक यह दूसरों का आश्रय लेकर पराधीन होते ही रहेगे और दुःख पाते ही रहेगें ।
जबतक मनुष्य भगवान का सहारा नहीं लेगा, तबतक वह दुःख पाता ही रहेगा ।
हम सबका जीवन भी प्रभु भक्ति से प्रकाशित हो यही प्रार्थना है प्रभु के चरणों में
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