Sunday, 18 October 2015

कृष्णं वन्दे जगद् गुरुम् , सूत्र लो गले उतार।



कृष्णं वन्दे जगद् गुरुम् , सूत्र लो गले उतार।
जिनको गुरु तुम कररहे, वे खाक लगाऐं पार।।
क्योंकि न पूंजी पास उन, भक्ति, भगवन्नाम।
उनके पास तो भवन हैं, और करोडों दाम।।
उन्हें भूख सम्मान की , उन्हें न चहिए तत्व।
उनको, अरु उन नजर में, केवल मान महत्व।।
गर तुमको, हरि चाहिए , और वास हरिधाम।
तो खुद के गुरु खुद बनो, उन्हें न रोटीराम।

अपने भक्तों पर कृपा , जब करते हैं कृष्ण।
तो उसके, पैदा करें , मन में एक ही प्रश्न।।
कि यह जो मैंसब कररहा,तब आए क्या काम
जब न्यौता यमराज का, आए " रोटीराम "।।
चूंकि वो रिश्वत ले नहीं, सो यह सब तब व्यर्थ।
फिरमैं क्यों वहसब भरूँ, जिसका कुछ नहीं अर्थ
वह क्यों? नहीं जोडूं जिसे , ले जा पाऊं संग।
यही सोच देती सिखा , उसे मरण का ढंग।।
हरी शरणम् l l
" रोटीराम " ऋषिकेश

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