कृष्णं वन्दे जगद् गुरुम् , सूत्र
लो गले उतार।
जिनको गुरु तुम कररहे, वे
खाक लगाऐं पार।।
क्योंकि न पूंजी पास उन, भक्ति, भगवन्नाम।
उनके पास तो भवन हैं, और
करोडों दाम।।
उन्हें भूख सम्मान की , उन्हें
न चहिए तत्व।
उनको, अरु
उन नजर में, केवल मान महत्व।।
गर तुमको, हरि
चाहिए , और वास हरिधाम।
तो खुद के गुरु खुद बनो, उन्हें
न रोटीराम।
अपने भक्तों पर कृपा , जब
करते हैं कृष्ण।
तो उसके, पैदा
करें , मन में एक ही प्रश्न।।
कि यह जो मैंसब कररहा,तब
आए क्या काम
जब न्यौता यमराज का, आए
" रोटीराम "।।
चूंकि वो रिश्वत ले नहीं, सो
यह सब तब व्यर्थ।
फिरमैं क्यों वहसब भरूँ, जिसका
कुछ नहीं अर्थ
वह क्यों? नहीं
जोडूं जिसे , ले जा पाऊं संग।
यही सोच देती सिखा , उसे
मरण का ढंग।।
हरी शरणम् l l
" रोटीराम " ऋषिकेश
No comments:
Post a Comment