मानव जीवन का लक्ष्य केवल एक ही है, हम
बस इतना जानना और मानना है
वासुदेव सर्वं इति सब कुछ वासुदेव
ही है,
जो अच्छा या पूरा है सब वासुदेव के
परम इच्छा है, सब कल्याण कारी है,
गीता में भगवान कहता भी है
अहं सर्वस्य प्रभवो मत्तः सर्वं
प्रवर्तते ।
इति मत्वा भजन्ते मां बुधा
भावसमन्विताः ॥
भावार्थ: मैं वासुदेव ही संपूर्ण
जगत् की उत्पत्ति का कारण हूँ
और मुझसे ही सब जगत् चेष्टा करता
है,
इस प्रकार समझकर श्रद्धा और भक्ति
से युक्त बुद्धिमान् भक्तजन
मुझ परमेश्वर को ही निरंतर भजते
हैं॥
आगे फिर भी भगवान कहते है
सर्वधर्मान्परित्यज्य मामेकं शरणं
व्रज ।
अहं त्वा सर्वपापेभ्यो
मोक्षयिष्यामि मा शुचः ॥
भावार्थ: संपूर्ण धर्मों को अर्थात
संपूर्ण कर्तव्य कर्मों को मुझमें त्यागकर
तू केवल एक मुझ सर्वशक्तिमान, सर्वाधार
परमेश्वर की ही शरण में आ जा।
मैं तुझे संपूर्ण पापों से मुक्त
कर दूँगा, तू शोक मत कर॥
भगवान स्पष्ट कह रहे है
“मैं तुझे संपूर्ण पापों से मुक्त कर दूँगा, तू शोक मत कर“
तो भला हम सूफी, फकीरों, कब्रों
पर गनाहो की माफ़ी के लिए नाक क्यों रगरे
और “जो अच्छा या पूरा है सब
वासुदेव के परम इच्छा है, सब कल्याण कारी है,”
तो भला हम सूफी, फकीरों, कब्रों
पर फरयाद ले कर मागने क्यों जाये
बस यह जान ले “वासुदेव
सर्वं इति सब कुछ वासुदेव ही है” तो सब कुछ कल्याण कारी ही होगा
ॐ नमो भगवते कृष्ण वासुदेवाये नमो ; ॐ
नमो भगवते कृष्ण वासुदेवाये नमो; ॐ नमो भगवते कृष्ण वासुदेवाये नमो
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