Tuesday, 18 April 2017

भगवान् का धाम

हम भगवान् का धाम छोड़कर इस भौतिक जगत में क्यों अाए?

हमारी इच्छाएँ हमें यहाँ ले अाई हैं । जब जीव भगवान् से विमुख होकर स्वतन्त्र रूप से भोग करने की इच्छा करता है तो वह इस भौतिक जगत् में अा जाता है । अाप एेसा सोच सकते हैं कि भगवान् हमारी इच्छाअों पर नियन्त्रण करके जबरदस्ती हमें अपने धाम में ही क्यों नहीं रोक लेते ।

क्योंकि भगवान् अौर हमारे बीच का सम्बन्ध प्रेम का सम्बन्ध है अौर प्रेम में जोर-जबरदस्ती नहीं होती । यदि हम अपनी इच्छा के विरुद्ध प्रेम करेंगे तो हम तो पत्थर जैसे हो जायेंगे ।

प्रेम में स्वतन्त्र इच्छा का होना बहुत अावश्यक है अौर क्योंकि भगवान् अौर हमारा सम्बन्ध प्रेम का है इसलिए इसमें जीव द्वारा अपनी स्वतन्त्र इच्छा का सही प्रयोग कर भगवान् को प्रेम करना अत्यन्त अावश्यक है ।

यह समझना बहुत कठिन है कि इतने सुखमय अौर अानंदित वातावरण में हमने स्वतन्त्र इच्छा का दुरुपयोग वहाँ से इस दु:खमय भौतिक जगत् में अाने के लिए क्यों किया?
तो क्या यह सत्य नहीं है कि अनेक डॉक्टर भी ध्रूमपान एवं शराब इत्यादि का सेवन करते हैं जबकि वे भलि-भाँति जानते हैं कि इनका सेवन स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है । एक छोटा बच्चा जिसके पास खाने के लिए सभी प्रकार के स्वादिष्ट व्यंजन हैं अौर खेलने के लिए बहुत अच्छे-अच्छे खिलौने हैं किन्तु फिर भी वह अपनी स्वतन्त्र इच्छा का दुरुपयोग कर बासी खाना खाना चाहता है अौर तेज धार के चाकू से खेलना चाहता है ।

भगवान् श्रीकृष्ण ने हमें स्वतन्त्रता प्रदान की है अौर उसी स्वतन्त्रता का दुरुपयोग कर हम इस भौतिक जगत् में अाये हैं । अौर उसी स्वतन्त्रता का सदुपयोग हम उनसे अपने प्रेममय सम्बन्ध को पुन: स्थापित करने में कर सकते हैं अौर पुन: अाध्यात्मिक स्तर पर उनसे जुड़ सकते हैं ।

हमारी स्थिति धनी व्यक्ति के उस बेटे के समान है जो अपने पिता से अपना हिस्सा माँगकर बहुत सा धन लेकर शहर चला जाता है, अौर व्यक्ति के पास धन होता है तो अनेक प्रकार के झूठे मित्र भी व्यक्ति के निकट अा जाते हैं अौर यही इसके साथ हुअा अौर इन झूठे मित्रों ने इसका खूब शोषण किया अौर अन्तत: वह अपना सबकुछ गवाँ बैठा । न उसके पास रहने के लिए घर बचा न खाने के लिए भोजन । तब उसने एक धनी व्यक्ति के यहाँ सुअरों को पालने की नौकरी कर ली अौर उसका रहना अौर खाना बहुत ही निम्न कोटि का था । अपने पिता को स्मरण करते हुए वह अनेक दिनों तक रोता रहा । कई हफ्तों तक अत्यधिक कष्टमय एवं दु:खी जीवन बिताने के पश्चात् उसने अपने पिता के पास वापस जाकर माफी मांगने का निर्णय लिया ।

अौर जब वह अपने पिता के घर पहुँचा तो कुछ गाँव वालों ने उसके पिता को इसकी खबर पहुँचा दी, पिताजी दौड़ते हुए अाये अौर उसका प्रेमपूर्वक अालिंगन किया । पिताजी बड़े प्रेम से उसे घर ले गये अौर बहुत ही अच्छे-अच्छे व्यंजन खिलाये अौर उन्होंने घोषणा की कि अाज से तुम ही इस घर के मालिक हो, यहाँ खुशी से रहो ।

पुत्र की अाँखों से अश्रुअों की धारा बह पड़ी वह सोचने लगा, मेरे पिता कितने विशेष हैं, मैंने अपने स्वार्थ के लिए इन्हें छोड़ दिया था अौर ये फिर भी मुझसे कितना प्रेम करते हैं अौर मुझे फिर से अपनाने के लिए कितने अधिक अातुर हैं ।

ठीक इसी प्रकार भगवान् श्रीकृष्ण भी हमें पुन: अपनाने के लिए बहुत ही अातुर हैं हमें केवल उनकी अोर मुड़ने की देर है ।

हरे कृष्ण

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