श्री राधा रहस्य, कौन जानता है ?
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ब्रज
 धाम में किसी राजा का नहीं बल्कि रानी का राज चलता है ! और ये रानी कोई और
 नहीं, हमारी प्यारी लाडली सरकार श्री राधा रानी जी हैं ! श्री राधा जी को 
श्रीकृष्ण की आत्मा कहा जाता है ! ये श्री वृषभानु जी और कीर्तिदा जी की 
पुत्री थीं। पद्म पुराण में श्री वृषभानु जी को राजा बताते हुए कहा गया है 
कि यह राजा जब यज्ञ की भूमि साफ कर रहे थे तब उन्हें भूमि कन्या के रूप में
 श्री राधा मिली !
राजा ने
 उन्हें अपनी कन्या मानकर पालन पोषण किया। श्रीराधा जी के बारे में एक 
दूसरी कथा यह भी मिलती है कि भगवान श्रीविष्णु ने श्रीकृष्ण अवतार लेते समय
 सभी देवताओं से पृथ्वी पर अवतार लेने के लिए कहा तो भगवान विष्णु की 
अर्धांगिनी माँ लक्ष्मी, राधा जी बनकर पृथ्वी पर आईं।
श्री राधा जी के महात्म वर्णित स्तुति है,
त्वं माता कृष्ण प्राणाधिका देवी
कृष्ण प्रेममयी शक्ति शुभे,
पूजितासी मया सा च या श्री कृष्णेन पूजिता,
कृष्ण भक्ति प्रदे राधे नमस्ते मंगल प्रदे !
अर्थात
 – हे श्री राधा, आप श्री कृष्ण के प्राण (अधिष्ठात्री देवी) हैं तथा आप ही
 श्री कृष्ण की प्रेममयी शक्ति तथा शोभा हैं ! श्री कृष्ण भी जिनकी पूजा 
करते हैं वे देवी मेरी पूजा स्वीकार करें ! हे देवी राधा, मुझे कृष्ण भक्ति
 प्रदान करें मेरा नमन स्वीकार करें तथा मेरा मंगल करें !
हे दीनबन्धो दिनेश सर्वेश्वर नमोस्तुते,
गोपेश गोपिका कांत राधा कांता नमोस्तुते !
अर्थात
 – हे दीनबंधो, दिनेश, सब ईश्वरों के ईश्वर, प्रभु मेरा नमन, मेरी स्तुति 
स्वीकार करें ! आप गोपिओं के ईश्वर एवं प्राणनाथ हैं तथा श्री राधा जी आपकी
 प्राण (अधिष्ठात्री देवी) हैं ! प्रभु मेरा नमन मेरी स्तुति स्वीकार करें !
श्री
 राधा जी का मुख्य मंदिर बरसाना ग्राम की पहाड़ी पर स्थित है। यहां की 
लट्ठमार होली विश्व प्रसिद्ध है। श्रीराधा, भगवान श्रीकृष्ण की शक्ति हैं। 
श्रीकृष्ण के प्राणों से ही इनका प्रादुर्भाव हुआ है। श्रीकृष्ण इनकी नित्य
 आराधना करते हैं। इनके माता पिता श्री वृषभानु जी एवं माँ कीर्तिदा जी ने 
पूवर्जन्म में पति पत्नी के रूप में कई वर्षों तक कठिन तप करके ईश्वर से 
श्री राधा जी को पुत्री रूप में पाने का आशीर्वाद प्राप्त किया था !
इस
 प्रकार द्वापर के अंत में योगमाया ने श्रीराधा के लिए उपयुक्त क्षेत्र की 
रचना कर दी। भाद्र शुक्ल अष्टमी दिन सोमवार के मध्यान्ह में कीर्तिदा रानी 
के प्रसूतिगृह में सहसा एक दिव्य ज्योति फैल गयी। उस तीव्र ज्योति से सबके 
नेत्र बंद हो गये। जब गोप सुंदरियों के नेत्र खुले तो उन्होंने देखा, एक 
अति सुंदर कन्या कीर्तिदा जी के पास पड़ी है। कीर्तिदा रानी ने अपनी कन्या 
को देखकर प्रसन्नता से एक लाख गोदान का संकल्प किया। बालिका का नाम राधा 
रखा गया।
एक बार देव ऋषि 
नारद ने ब्रज में श्रीकृष्ण का दर्शन किया। उन्होंने सोचा जब स्वयं गोलोक 
विहारी श्रीकृष्ण भूलोक पर अवतरित हो गये हैं तो गोलोकेश्वरी श्रीराधा जी 
भी कहीं न कहीं गोपी रूप में अवश्य अवतरित हुई होंगी ! घूमते घूमते देव ऋषि
 श्री वृषभानु जी के विशाल भवन के पास पहुंचे।
श्री
 वृषभानु जी ने उनका विधिवत सत्कार किया। फिर उन्होंने देव ऋषि से निवेदन 
किया कि, भगवन ! मेरी एक पुत्री है वह सुंदर तो इतनी है मानो सौन्दर्य की 
खान हो किंतु हमारे विशेष प्रयास के बाद भी वह अपनी आंखें नहीं खोलती है ! 
आश्चयर्चकित देव ऋषि नारद वृषभानु जी के साथ श्रीराधा के कमरे में गये वहां
 बालिका का अनुपम सौन्दर्य देखकर देव ऋषि के विस्मय की सीमा न रही।
नारदजी
 के मन में आया निश्चय ही यही श्रीराधा हैं ! वृषभानु को बाहर भेजकर 
उन्होंने एकांत में श्रीराधा की नाना प्रकार से स्तुति की किंतु उन्हें 
श्रीराधा के दिव्य स्वरूप का दर्शन नहीं हुआ। जैसे ही देव ऋषि नारद ने 
श्रीकृष्ण वंदना करना शुरू की वैसे ही दृश्य बदल गया और देव ऋषि नारद को 
किशोरी श्रीराधिका जी का दर्शन हुआ। सखियां भी वहां प्रकट होकर श्रीराधा को
 घेर कर खड़ी हो गयीं। श्रीराधा देव ऋषि को अपने दिव्य स्वरूप का दर्शन 
कराने के बाद फिर से पालने में बालिका रूप में प्रकट हो गयीं। देव ऋषि नारद
 गदगद कण्ठ से श्रीराधा का यशोगान करते हुए वहां से चल दिये।
ब्रम्हवैवर्तपुराण
 में भगवान श्रीकृष्ण ने अपने और श्रीराधा के अभेदता का प्रतिपादन करते हुए
 कहा है कि श्रीराधा के कृपा कटाक्ष के बिना किसी को मेरे प्रेम की उपलब्धि
 हो ही नहीं सकती। वास्तव में श्रीराधा और श्री कृष्ण एक ही देह हैं। 
श्रीकृष्ण की प्राप्ति और मोक्ष दोनों श्रीराधाजी की कृपा दृष्टि पर ही 
निभ्रर हैं।
उन अनन्त 
ईश्वर श्री कृष्ण की अनन्त शक्ति श्री राधा को पूरी तरह से जानना, क्या 
किसी जीव के लिए सम्भव है ! इस प्रश्न का उत्तर भी कोई श्री राधा कृपा 
प्राप्त साधक ही दे सकता है !
श्री
 कृष्ण की आराध्या के रूप में श्री राधा रानी की पूजा की जाती है। वृंदावन 
के सेवाकुंज मंदिर में श्री कृष्ण, श्री राधा की चरण सेवा करते हैं। बेंणी 
गूंथते हैं और अपनी आराध्या को प्रसन्न करने के हरसंभव प्रयास करते हैं। 
कहा जाता है कि श्री कृष्ण को पाने के लिए श्री राधा को पाना जरूरी है। यह 
भी कहा जाता है कि श्री राधा की भक्ति करने वाले के पास प्रभु श्री कृष्ण 
स्वयं चलकर आते हैं।
श्री 
वृषभानुनंदिनी राधा जी की भक्ति भी बहुत सरल है। श्री राधा नाम का स्मरण जप
 या भजन कर लेने मात्र से प्राणी का निश्चित ही उद्धार हो जाता है !
श्री राधा राधा राधा 
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