Saturday, 1 April 2017

सुंदर मार्मिक प्रसंग


एक संत ब्रजमोहनदास जी के पास आया करते थे. श्री रामहरिदास जी, उन्हेंनें पूछाँ कि बाबा लोगों के मुहॅ से हमेशा सुनते आए कि “वृदांवन के वृक्ष को मर्म ना जाने केाय, डाल-डाल और पात-पात श्री राधे राधे होय” तो महाराज क्या वास्तव में ये बात सत्य है.कि वृदावंन का हर वृक्ष राधा-राधा नाम गाता है.
तो ब्रजमोहनदास जी ने कहा - क्या तुम ये सुनना या अनुभव करना चाहते हो ? 

तो श्री रामहरिदास जी ने कहा - कि बाबा! कौन नहीं चाहेगा कि साक्षात अनुभव कर ले. और दर्षन भी हो जाए. आपकी कृपा हो जाए, तो हमें तो एक साथ तीनो मिल जायेगे. तो ब्रजमोहन दास जी ने दिव्य दृष्टिी प्रदान कर दी. और कहा - कि मन में संकल्प करो और देखो और सामने "तमाल का वृक्ष" खडा है उसे देखो, तो रामहरिदास जी ने अपने नेत्र खोले तो क्या देखते है कि उस तमाल के वृक्ष के हर पत्ते पर सुनहरे अक्षरों से राधे-राधे लिखा है उस वृक्ष पर लाखों तो पत्ते है. 

जहाँ जिस पत्ते पर नजर जाती है. उस पर राधे-राधे लिखा है, और जब पत्ते हिलते तो राधे-राधे की ध्वनि हर पत्ते स्व निकल रही है. तो आष्चर्य का ठिकाना नहीं रहा और ब्रजमोहन दास जी के चरणों में गिर पडे और कहा कि बाबा आपकी और राधा जी की कृपा से मैने वृदांवन के वृक्ष का मर्म जान लिया इसको केाई नहीं जान सकता कि वृदांवन के वृक्ष क्या है? ये हम अपनेशब्दों में बयान नहीं कर सकते. ये तो केवल संत ही बता सकता है हम साधारण दृष्टिी से देखते है . जहाँ पर हर डाल, हर पात पर, राधे
श्याम बसते है .

व्रज की महिमा को कहे, को वरने व्रज धाम,
जहा बसत हर सास में श्री राधे ओर श्याम
व्रज रज जकू मिली गई, बकी चाट ना शेष,
व्रज की चाहत में रहे, ब्रह्मा विष्णु महेश

वृदांवन की महिमा केा कौन अपनी एक जुबान से गा सकता है स्वंय शेष जी अपने सहस्त्र मुखों से वृदांवन की महिमा का गुणगान नहीं कर सकते है . जहाँ ब्रज की रज में राधे श्याम बसते है. ब्रज की चाहत तो बह्रमा महेश विष्णु करते है. ब्रज के रस कु जो चखे, चखे ना दूसर स्वाद एक बार राधा कहे, तो रहे ना कुछ ओर याद जिनके रग-रग में बसे श्री राधे ओर श्याम ऐसे व्रज्वासिन कु शत-शत नमन प्रणाम क्येांकि संत को वो वृदांवन दिखता है जो साक्षात गौलोंक धाम का खंड है. 

हमें साधारण वृदांवन दिखता है. क्योकि हमारी द्रष्टि मायिक है,हम संसार कि विषयों में डूबे हुए है,जब किसी संत कि कृपा होती है तभी वे किसी विरले भक्त हो वह दिव्य द्रष्टि देते है जिससे हम उस दिव्य वृंदावन को देख सकते है, और अनुभव कर सकते है कि व्रज का हर पत्ता और हर डाल राधा रानी जी के गुणों का बखान करता है.  
जय श्री राधे

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