यहां हैं राधा में कृष्ण कृष्ण में राधा
वृंदावन का नाम आते ही जहन में मंदिरों की तस्वीरें घूमने लगती है।
मंदिरों से आने वाली घंटियों की मधुर ध्वनि भीतर में गूंजने लगती है।
माखन खाते, मटकी फोड़ बालकृष्ण पर प्रेम उमड़ने लगता है।
उनकी शरारतों से तंग आती और उनके रूठने पर विचलित होती गोपियां नजर आने लगती हैं।
वृंदावन का नाम आते ही मन राधे-राधे, हरे-कृष्ण, हरे-कृष्ण गाते हुए झूमने लगता है।
वृंदावन नटखट, माखनचोर, गोपाल, वंशीधर भगवान श्री कृष्ण की बाल लीलाओं से लेकर उनकी रासलीलाओं तक की गवाह है।
यही वो जगह है जहां खुद भगवान श्री कृष्ण राधामयी हो जाते हैं।
राधा में कृष्ण और कृष्ण में राधा नजर आती हैं।
वृंदावन के राधावल्लभ मंदिर में यह नजारा आज भी जीवित हो जाता है।
इस मंदिर में राधावल्लभ विग्रह के दर्शन मात्र से श्रद्धालुओं की मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं।
क्या है राधावल्लभ मंदिर की कहानी
इस मंदिर की कहानी पुराणों में भी मिलती है।
माना जाता है कि भगवान विष्णु के एक उपासक होते थे,,
जिनका नाम आत्मदेव था। वे एक ब्राह्मण थे।
एक बार उन्हें भगवान शिव के दर्शन पाने की इच्छा हुई फिर क्या था
वे
भगवान शिव का कठोर तप करने लगे अब भगवान भोलेनाथ ठहरे बहुत ही सरल,
आत्मदेव के कठोर तप को देखकर वे प्रसन्न हुए और वरदान मांगने को कहा।
ब्राह्मण आत्मदेव को तो बस दर्शन की भगवान शिव के दर्शनों की अभिलाषा थी,
जो कि पूरी हो चुकी थी
लेकिन भगवान शिव ने वरदान मांगने की भी कही है
तो उन्होंने उसे भगवान शिव पर ही छोड़ दिया और कहा कि भगवन जो आपके हृद्य को सबसे प्रिय हो,
यानि जो आपको अच्छा लगता हो वही दे दीजिये।
तब भगवान शिव ने इस राधावल्लभलाल को प्रकट किया
साथ ही इसकी पूजा व सेवा करने की विधि भी बताई।
कई
वर्षों तक आत्मदेव इस विग्रह को पूजते रहे बाद में महाप्रभु हरिवंश प्रभु
इच्छा से इस विग्रह को वृंदावन लेकर आये और उन्हें स्थापित कर राधावल्लभ
मंदिर की नीवं रखी।
मदनटेर जिसे आम बोल-चाल में ऊंची ठौर कहा जाता है,
वहां पर लताओं का मंदिर बनाकर इन्हें विराजित किया।
राधा वल्लभ दर्शन दुर्लभ
राधावल्लभ मंदिर में स्थापित इस अनोखे विग्रह में राधा और कृष्ण एक ही नजर आते हैं।
इसमें आधे हिस्से में श्री राधा और आधे में श्री कृष्ण दिखाई देते हैं।
माना जाता है कि जो भी सारे पाप कर्मों को त्याग कर निष्कपट होकर सच्चे मन के साथ मंदिर में प्रवेश करता है
सिर्फ उस पर ही भगवान प्रसन्न होते हैं और उनके दुर्लभ दर्शन उनके लिये सुलभ हो जाते हैं।
लेकिन जिनके हृद्य में प्रेम और भक्ति की भावना नहीं होती वे लाख यत्न करने पर भी दर्शन नहीं कर पाते।
इसी कारण इनके दर्शन को लेकर श्रद्धालुओं में भजन-कीर्तन, सेवा-पूजा करने का उत्साह रहता है।
सभी जल्द से जल्द भगवान श्री राधावल्लभ को प्रसन्न कर मनोकामनाओं को पूर्ण करने का आशीर्वाद चाहते हैं।
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