जो 4 लीला ब्रज में नित्य है वही 4 लीला वैष्णव के घर में भी नित्य है।
हमारे मन में प्रश्न उठता है की ये 4 लीला वैष्णव की गृह सेवा में कैसे नित्य है?
गृह सेवा में भी ये 4 लीला नित्य है इसका खूब सुन्दर भाव एक ग्रन्थ में बताया गया है।
ऐसा
मनोरथ मन में लिए हुए जब हम ठाकुरजी का श्रृंगार करे और अचानक से अपने आप
जब श्रृंगार बड़ा हो जाये। ऐसा जब बार बार हो तब मानना की आज श्री ठाकुरजी
की मानलीला चल रही है।
ब्रज में 4 लीला नित्य है। मानलीला, दानलीला' रासलीला, गोचारणलीला। ये लीला श्री प्रभु नित्य करते है।
रासलीला-----
जब हम सेवा में श्री ठाकुरजी का श्रृंगार करने बैठे हो और याद आये की कुछ
वस्तु रह गई। "उस वस्तु को लाने के लिए उठे, उस वस्तु को लाकर फिर बैठे
इतने में कुछ और वस्तु लाने की याद आवे फिर उठकर उस वस्तु को लाकर बैठे"।
इस तरह बार बार हो तब मानना की आज प्रभु रासलीला कर रहे है और "हलारी" रास
चल रहा है।
जब हम ठाकुरजी
की सेवा में उपस्थित हो और सेवा में जरा भी मन ना लगे, चित्त की एकाग्रता
ना हो तब मानना की ये मन रूपी मटकी प्रभु प्रेम से भराई नही, खाली है इसलिए
प्रभु उस खाली मटकी को फोड़ देते है इसलिए श्री ठाकुरजी की सेवा में मन
लगता नही।
कभी थोड़ा मन ठाकुरजी की सेवा में लगे और
थोड़ा मन लौकिक काम में लगे तब मानना की प्रभु प्रेम से अधूरी मटकी भरी हुई
है। अधूरी भरी हुई मटकी को प्रभु ढोल देते है।
दानलीला----
जब श्री प्रभु ने दानलीला करी तब प्रभु ने कुछ मटकी को फोड़ दिया, कुछ मटकी
को ढोल दिया और कुछ मटकी प्रभु अपने संग में ले गये।
जब
हम ठाकुरजी की सेवा में उपस्थित हो और सेवा में जरा भी मन ना लगे, चित्त
की एकाग्रता ना हो तब मानना की ये मन रूपी मटकी प्रभु प्रेम से भराई नही,
खाली है इसलिए प्रभु उस खाली मटकी को फोड़ देते है इसलिए श्री ठाकुरजी की
सेवा में मन लगता नही।
मटकी गोपीजन का मन है और मटकी में भरा गोरस प्रभु के लिए प्रेम, सर्वात्मभाव है।
मानलीला----
जब अपने घर में कोई वैष्णव आने वाले हो और अपने मन में मनोरथ जगे की-"आज
ये वैष्णव आने वाले है तो प्रभु को सुन्दर और भारी श्रृंगार धरु और आने
वाले वैष्णव दर्शन करके कहें की- वाह! क्या खूब सुन्दर श्रृंगार हुआ है।"
जब
हम सेवा में उपस्थित हो तब कोई लौकिक विचार नही आये, मन कही और ना हो, सभी
इन्द्रिया एक साथ श्री ठाकुरजी क़े स्वरूप में लीन हो तब मानना की आज मेरी
मन रूपी मटकी रस से पूरी भराई है और प्रभु उस भरी हुई मटकी को अपने संग में
ले गये है। जिससे चित्त प्रभु में स्थिर हुआ है।
जब
मन रूपी मटकी खाली होगी तो प्रभु उसे फ़ोड़ देंगे, जब मन रूपी मटकी अधूरी
होगी तो प्रभु उसे ढोल देंगे और जब मन रूपी मटकी पूरी भरी हुई होगी तो
प्रभु उसे अपने संग ले जायेंगे।
गोचारणलीला------
गो यानि हमारी इंद्रियाँ। प्रभु ब्रज में गायो को चराने जाते नही बल्कि
हमारी इन्द्रियों जो प्रभु को छोड़कर दूर दूर जा रही है उन इन्द्रियों को
घेर घेर कर प्रभु अपने पास लेने जाते है। जब श्री ठाकुरजी से हम दूर हुए
हो, विमुख हुए हो तब हमें कोई उत्तम वस्तु देखकर हमे हमारे प्रभु की याद
आये की "ये वस्तु तो मेरे प्रभु लायक है" तब मानना की आज प्रभु गोचारणलीला
कर रहे है।
श्री कुञ्ज बिहारी श्री हरिदास ।
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