अशेषसंक्लेशशमं विधत्ते गुणानुवादश्रवणं मुरारेः ।*
*कुतः पुनस्तच्चरणारविन्द परागसेवारतिरात्मलब्धा ॥*
(भा. ३/७/१४)
*कुतः पुनस्तच्चरणारविन्द परागसेवारतिरात्मलब्धा ॥*
(भा. ३/७/१४)
जितने प्रकार के क्लेश होते हैं, वे सब केवल भगवान् का
गुणानुवाद श्रवण करने मात्र से शान्त हो जाते हैं । ज्यादा कुछ नहीं कर
सकते हो तो कथा सुन लो और अगर भक्ति आ गयी तो फिर कहना ही क्या? संसार का
ऐसा कोई कष्ट नहीं है जो भगवान् की भक्ति से दूर न हो जाए । कहीं भगवान के
चरणों में रति हो गयी फिर तो क्या कहना? निश्चित रूप से समस्त कष्ट केवल
कथा सुनने मात्र से चले जाते हैं ।
*शारीरा मानसा दिव्या वैयासे ये च मानुषाः ।*
*भौतिकाश्च कथं क्लेशा बाधन्ते हरिसंश्रयम् ॥*
(भा. ३/२२/३७)
*भौतिकाश्च कथं क्लेशा बाधन्ते हरिसंश्रयम् ॥*
(भा. ३/२२/३७)
शरीर की जितनी बीमारियाँ हैं, मन के रोग, दैवी-कोप,
भौतिक-पंचभूतों के क्लेश, सर्दी-गर्मी या सांसारिक-प्राणियों द्वारा
प्राप्त कष्ट, सर्प, सिंह आदि का भय; ये सब भगवान् के आश्रय में रहने वाले
पर बाधा नहीं करते ।
लेकिन ध्यान रहे कि कथा एवं हरिनाम निरपराध हो एवं गलती से भी
कभी किसी वैष्णव का अपराध ना हो, वैष्णव का अपराध तो सपने में भी नहीं
सोचना।
नहीं तो सब बेकार है ।
*न भजति कुमनीषिणां स इज्यां*
*हरिरधनात्मधनप्रियो रसज्ञः ।*
*श्रुतधनकुलकर्मणां मदैर्ये*
*विदधति पापमकिञ्चनेषु सत्सु ॥*
(भा. ४/३१/२१)
*हरिरधनात्मधनप्रियो रसज्ञः ।*
*श्रुतधनकुलकर्मणां मदैर्ये*
*विदधति पापमकिञ्चनेषु सत्सु ॥*
(भा. ४/३१/२१)
कोई कितनी भी आराधना कर रहा है, भजन कर रहा है लेकिन अगर
अकिञ्चन भक्तों का अपराध करता है तो भगवान् उसके भजन को स्वीकार नहीं करते
हैं । एक छोटे-से साधक-भक्त से भी चिढ़ते हो तो तुम्हारा सारा भजन नष्ट;
फिर चाहे जप-तप कुछ भी करते रहो, उससे कुछ नहीं होगा क्योंकि भगवान्
निर्धनों के धन हैं, गरीबों से प्यार करते हैं ।
मनुष्य भक्तों का वैष्णवों का अपराध क्यों करता है?
मद के कारण । विद्या का मद (ज्यादा पढ़ गया तो छोटे लोगों को मूर्ख समझने लगता है); धन का मद (धन-सम्पत्ति ज्यादा बढ़ गयी तो दीनों का तिरस्कार करता है); अच्छे कुल में जन्म का मद (ऊँचे कुल में जन्म हो गया तो अपने को सर्वश्रेष्ठ समझने लगता है और दीन-हीनों की उपेक्षा करता है); इसी तरह से कोई अच्छा कर्म कर लिया तो उसका मद, त्याग-वैराग्य कर लिया तो उससे मद हो जाता है, सांसारिक वस्तुओं में अहंता-ममता के कारण लोग ज्यादा अपराध करते हैं ।
मद के कारण । विद्या का मद (ज्यादा पढ़ गया तो छोटे लोगों को मूर्ख समझने लगता है); धन का मद (धन-सम्पत्ति ज्यादा बढ़ गयी तो दीनों का तिरस्कार करता है); अच्छे कुल में जन्म का मद (ऊँचे कुल में जन्म हो गया तो अपने को सर्वश्रेष्ठ समझने लगता है और दीन-हीनों की उपेक्षा करता है); इसी तरह से कोई अच्छा कर्म कर लिया तो उसका मद, त्याग-वैराग्य कर लिया तो उससे मद हो जाता है, सांसारिक वस्तुओं में अहंता-ममता के कारण लोग ज्यादा अपराध करते हैं ।
इसलिए अपराध रहित होकर भगवान् का भजन करो, फिर देखो चमत्कार; किसी भी तरह का संकट, क्लेश तुम्हें बाधा नहीं पहुँचा सकेगा ।
राधे राधे
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