Monday, 1 February 2016

घनश्याम की शोभा




मेरे घनश्याम की  जुल्फे अजब नागिन-सी काली है। किसी के दिल को डसने के लिये मानों ये पाली हैं। ।
अजायब चाँद सा" मुखडा, दमकती खोर केशर की । सुहाई नील- क्जों से कपोलों की गुलाली है । । नुकीली नासिका थिरकन गजब बेसर के मोती की । लिये बैठा मनो: शुक चोंच मे: मुक्ता की डाली है । निगाहे शान शमसीरें हमारे दिल की कातिल हैं । वहीँ समझेगा इनकी मार जिसने पीर पाली है । दुपट्टा  जर्द लासानी जरी न्क्काश्दारी का । नहीं कुछ तोर रखती जो कमर पर पेंच डालीं है । बनी बनमाल फूलों की फबी है जाके कदमों  तक । फिसल पड़ती है आँखें भी छटा ऐसी निराली है । कदम की छाँह के नीचे खडे बाँकी अदाँ से हैं । मधुर मुरली के रद्गधों से सुरीली धुन सम्हाली है । यही नखरे भरी झांकी हमारे दिल में आ बैठे । तो भर जाये तेरा जलवा जो दिल में जगह खाली है।
श्री राधा रमण परिवार प्रयास
.......जय श्री हरि

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