Friday 9 October 2015

|| मुक्ति के प्रकार ||


मुक्ति पांच प्रकार की होती है :-
[ १ ] सालोक्य : - इस मुक्ति से भगवद - धाम की प्राप्ति होती है | वहाँ सुख - दु:ख से अतीत अनंत आनंद है , और अनंत काल के लिए है |
[ २ ] सार्ष्टि : - यह सालोक्य से आगे की मुक्ति है | इसमें भक्त को परम धाम में भगवान के समान ऐश्वर्य प्राप्त हो जाता है | सम्पूर्ण ऐश्वर्य , धर्म , यश , श्री , ज्ञान और वैराग्य ये सभी भक्त को प्राप्त हो जाते हैं | केवल संसार की उत्पत्ति व संहार करना भगवान के आधीन रहता है , वह भक्त नहीं कर सकता |
[ ३ ] सामीप्य : - यह सार्ष्टि के आगे की मुक्ति है | इसमें भक्त भगवान के समीप रहता है और भगवान के माता - पिता , सखा , पुत्र , स्त्री आदि होकर रहता है |
[ ४ ] सारूप्य : - यह सामीप्य के आगे की मुक्ति है | इसमें भक्त का रूप भगवान के समान हो जाता है | भगवान के तीन चिन्हों [ श्री वत्स , भृगु - लता , और कोस्तुभ -मणी ] को छोड़कर शेष शंख , चक्र , गदा और पद्म आदि सभी चिन्ह भक्त के भी हो जाते हैं |
[ ५ ] सायुज्य : - यह सारूप्य से भी आगे की मुक्ति है | इसका अर्थ है " एकत्व " | इसमें भक्त भगवान से अभिन्न हो जाता है | यह ज्ञानियों को तथा भगवान द्वारा मारे जाने वाले असुरों की होती है |
प्रेमी [ ज्ञानी ] भक्त भगवान की सेवा को छोड़कर , उक्त सभी मुक्तियाँ भगवान द्वारा दिए जाने पर भी स्वीकार नहीं करता | वह केवल भगवान की सेवा करके , उनको सुख देना चाहता है | भक्त प्रेम का एक ही मतलब जानता है , देना , देना और देना | अपने सुख के लिए वह कोई काम नहीं करता |
अद्वेत सिद्धांत से जो मोक्ष होता है , उसमें जड़ता [ संसार ] से सम्बन्ध विच्छेद की मुख्यता रहती है और भक्ति से जो मोक्ष होता है , उसमें चिन्मय तत्त्व के साथ एकता की मुख्यता होती है |
|| इति ||

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