Saturday 10 October 2015

श्रीहरि से भेंट कब होगी?

 जब उनके प्रति ऐसी आकुलता बढ़ जायेगी कि उनके बिना एक-एक श्वाँस भार हो जाये और मर्मान्तक पीड़ा के बाबजूद भी जीवन को रखा जाये क्योंकि उनकी आस है, उनसे मिलने का विश्वास है। वे मेरे हैं, मुझे मिलेंगे ही ! वे न अपनावेंगे तो कौन अपनावेगा? ....
.दो नैना मत खाईयो, मोहे पिया मिलन की आस ! अब अपने सुख के लिये नहीं जीवन धारण करना। जीवित हैं तो केवल इसलिये कि इस देह के द्वारा उनकी कोई सेवा बन पड़े। मनुष्य-देह देकर दिया है उन्होंने देव-दुर्लभ अवसर ! देव भी तरसते हैं इस दु:खालय में आकर अपने को पवित्र करने के लिये। भोग के क्षणिक आनन्द को त्यागकर परमानन्द को पाने के लिये। उन अकारणकरुणावरुणालय को पाना अत्यन्त सहज ! पर सहज और सरल के लिये ही, बुद्धिजीवी के लिये नहीं। उन्हें प्रेम से ही पाया जा सकता है। सहज प्रेम ! शिशु का माता के प्रति !
नीर बिनु मीन दुखी, छीर बिनु शिशु जैसे।
पीर जाके औषध बिनु, कैसे रहमो जात है।।
चातक ज्यों स्वाति बूँद, चंद को चकोर जैसे।
चन्दन की चाह करि, सर्फ़ अकुलात है।।
निर्धन ज्यों धन चाहे, कामिनी को कंत चाहे।
ऐसी जाको चाह ताको, कछु न सुहात है।।
प्रेम को प्रभाव ऐसो, प्रेम तहां नेम कैसो।
सुन्दर कहत यह, प्रेम की ही बात है।।
और जब ऐसा प्रेम हो जाये तो असंभव भी संभव हो जाता है। सहजता, सरलता ही प्रकृति के रहस्यों को खोलने की कुंजी है। वे तो प्रति-क्षण में, प्रति-कण में ! उन्हें तो केवल प्रकट होना है। परदे से निकलना है। और जब उनकी कृपा हो गयी तो -
कमल मुख देखत कौन अघाय !
ज्यौं-ज्यौं पियत रूपरस लोचन त्यों-त्यों तृषा बढाय !!
अद्भुत बात कहत नहिं आवै सो जानै जो पाय !
सुनरी सखी लोचन अलि मेरे मुदित रहे अरुझाय !!
मुक्तामाल लाल उर ऊपर जनु फूली वनराय !
गोवर्धन धर अंग-अंग पर कृष्णदास बलि जाय !!
बलिहारी ! बलिहारी !! बलिहारी !!!
जय जय श्री राधे !

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