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Tuesday, 13 October 2015

माता कुन्ती दुख को गोविन्द से वर के रूप में पाना चाहती हैं।

जिस दुख से सारी दुनिया भागती है माता कुन्ती उस दुख को गोविन्द से वर के रूप में पाना चाहती हैं।
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सच में प्रेम तत्व ही ऐसा कि इसमें प्रभु-प्रेमियों को दुख भी सुख स्वरूप हो जाता है।।।
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माता कुन्ती कहती हैं कि हे गोविन्द!!!!
विपद: सन्तु न: शश्वत्तत्र तत्र जगद्गुरो।
भवतो दर्शनं यत्स्यादपुनर्भवदर्शनम्।।
अर्थ:--हे जगद्गुरो!!!!
हमारे जीवन में पद पद पर विपत्तियाँ आती रहे; क्योंकि विपत्तियों में ही निश्चित रूप से आपके दर्शन हुआ करते हैं और आपके दर्शन हो जाने पर जन्म -मृत्यु के चक्कर में नहीं आना पडता है।।
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सुख के माथे शिल परे जो नाम हृदय से जाय ।
बलिहारी वा दुख की जो पल पल नाम रटाय।।।
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माता कुन्ती के भाव निम्न पंक्तियों के माध्यम से दर्शन करें-----
हम इन्जार करेगे तेरी कयामत तक।
खुदा करे कि कयामत हो और तू आए।।
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ये इन्तजार भी इक इम्तहान होता है।
इसी से इश्क का शोला जवान होता है।।
ये इन्तजार सलामत हो और तू आए
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बिछाए शौक के ❤हिजदे बफा की राहों में।।
खडे हैं दीद (दर्शन)की हसरत लिए [?] निगाहों में।।
कबूल दिल ❤की इबादत हो और तू आए।
हम इन्तजार करेगे तेरी कयामत तक।
खुदा करे कि कयामत हो और तू आए।।।