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Friday, 9 October 2015

अज्ञानता और कर्म के अभिमान

इक दिन कान्हा ग्वाल बालों संग वन में विचरण करते थे, भांति भांति के खेल खेला करते थे
जब सब मिल कलेवा करने लगे, तब भोजन कम पड़ गया, किसी की ना क्षुधा शांत हुई
कान्हा से सब कहने लगे- आज तो भूख मिटी नहीं, कोई उपाय करना होगा
ये सुन अंतर्यामी ने विचार किया पास के वन में मथुरावासीब्राह्मण स्त्रियाँ मेरी दर्शनाभिलाषी हैं आज उनका मनोरथ सुफल करना होगा
ये सोच प्रभु ने ग्वाल बालों को ब्राह्मणों के पास भेज दिया
अज्ञानता और कर्म के अभिमान में आकंठ डूबे ब्राह्मणों ने ना श्याम बलराम की महिमा जानी
जब तक हवन पूजन ना पूरा होगा किसी को कुछ ना मिलेगा, ये देवताओं के नाम यज्ञ हम करते हैं यज्ञ पूर्ण होने पर ही सबको प्रसाद मिलेगा
उन ब्राह्मणों ने कान्हा को साधारण बालक ही जाना जिसके नाम का हवन करते थे उसी आदिशक्ति को ना पहचाना कोरे ज्ञान की महिमा गाते थे, असलियत को ना पहचान पाते थे
उदास हो ग्वालबालों ने सारा किस्सा बतलाया है
सुन प्रभु ने उन्हें दूजा उपाय बतलाया है अब की बार तुम सब उनकी पत्नियों के पास जाना जाकर उनसे भिक्षा माँग लाना, वे बड़ा आदर सत्कार करेंगी, जो तुम चाहोगे वे सब देंगी
जब ग्वाल बालों ने जाकर कृष्ण इच्छा बतलाई 

सुन ब्राह्मण पत्नियाँ हर्षायीं, मनसा वाचा कर्मना केशव मूर्ति के दर्शन की 
वो इच्छा रखती थीं सोने चांदी के थालों में हर्षित हो बड़े प्रेम से मेवा , मिठाई, पकवान , पूरी दूध , दही , मक्खन रख ग्वाल बालों संग केशव मूर्ति के दर्शन को चलीं, पतियों का कहा भी ना माना 
आज तो प्रेम था परवान चढ़ा, इक ब्राह्मणी को उसके पति ने बरजोरी घर में बंद किया उसने उसी क्षण अपना
पंचभौतिक शरीर छोड़ दिया और सबसे पहले पहुंच प्रभु के चरणों में खुद को समर्पित किया
प्रभु की दिव्य ज्योति में स्वयं को लीन किया
इधर अन्य स्त्रियाँ जब पहुंची थीं प्रभु की शोभा निरख अति हर्षित हुई थीं
साँवली सूरतिया पीताम्बर ओढ़े एक हाथ में कमल लिए गले में वनमाला और मस्तक पर मयूरपंख प्रभु के स्पर्श से शोभायमान होते थे
जिन्हें देख ब्राह्मणियों के नयन पुलकित होते थे 

नयन कटोरों से रसपान करती थीं
प्रभु की छवि को नेत्र मार्ग से भीतर ले जा आलिंगन करती थीं और ह्रदय ज्वाल शांत करती थीं
जब प्रभु ने जाना ये सब छोड़ मेरे पास आई हैं सिर्फ मेरे दरस की लालसा ही इनमे समायी है
तब प्रभु ने उनका स्वागत किया और उनके प्रेम को स्वीकार किया अब तुम मेरा दर्शन कर चुकीं
तुम्हारा आतिथ्य भी हमने स्वीकार किया मगर अब बहुत विलम्ब हुआ
तुम्हारे पति यज्ञ करते हैं तुम्हारे बिना ना यज्ञ सम्पूर्ण होगा जाओ अब तुम प्रस्थान करो
सुन ब्राह्मण पत्नियों ने कहा प्रभु आपकी ये बात निष्ठुर है श्रुतियां भी यही गाती हैं जिसने संपूर्ण समर्पण किया
जीवन अभिलाषा का त्याग किया उसे ना फिर संसार में लौटना पड़ा
अपने प्रियजनों की आज्ञा का उल्लंघन कर तुम्हारे पास आई हैं अब ना हमारे पिता , पुत्र, भाई पति,बंधु- बांधव
ना कोई हमें स्वीकार करेंगे अब आपके चरण कमलों के सिवा ना कोई ठिकाना पाती हैं
इतना सुन मोहन बोल पड़े अब ना तुम्हारा कोई तिरस्कार करेगा
उनकी तो बात ही क्या सारा संसार तुम्हारा सम्मान करेगा
क्योंकि अब तुम मेरी बन गयी हो मुझसे युक्त हो गयी हो
जो मेरा बन जाता है फिर वो सबके मन को भाता है उसे मेरा ही स्वरुप मिल जाता है
इसलिए हर मन में उसे देख आनंद समाता है
अब तुम जाओ मन मेरे को तुमने दे दिया है पर गृहस्थ धर्म का भी तो निर्वाह करना होगा और अपने पतियों में ही मेरा दिग्दर्शन करना होगा
हे प्रभु एक स्त्री यहाँ आती थी पर उसके पति ने रोक लिया ना जाने उसका क्या हुआ
ये सुन प्रभु ने उसका चतुर्भुजी रूप दिखला दिया
जब ब्राह्मण पत्नियाँ वापस आई हैं
जिनके मुखकमल पर दिव्य आभा जगमगाई है
जिसे देख ब्राह्मणों को बुद्धि आई है
अब अपनी अज्ञानता का उन्हें भान हुआ
जिस प्रभु के दर्शन ध्यानादिक में भी नहीं मिलते हैं'
वो आज स्वयं यहाँ पधारे थे हमारे जन्मों के पुण्यों को सुकृत करने आये थे 

हाय ! हमने ना उन्हें पहचाना हमारे पत्थर ह्रदयों में ना दया का भान हुआ, अभिमान के वृक्ष ने कैसा बुद्धि को भ्रमित किया, हमारे जीवन को धिक्कार है सिर धुन - धुन कर पछताते हैं
निज पत्नियों को बारम्बार शीश नवाते हैं, उनके प्रेम के आगे नतमस्तक हुए जाते हैं और प्रभु से क्षमा का दान
मांगे जाते हैं
जब पश्चाताप की अग्नि से ब्राह्मणों का ह्रदय निर्मल हुआ तब प्रभु ने उनका सब अपराध क्षमा किया
जिसने अपनी पत्नी को रोका था जब घर में जाकर देखा उसके मृत शरीर को पाया
ये देख सिर धुन- धुन कर वो पछताया
तब ब्राह्मण पत्नियों ने उसे सारा हाल बतलाया दौड़ा -दौड़ा प्रभु चरणों में वो आया अपने अपराध पर बहुत पछताया
तब उसकी स्त्री की भक्ति के प्रभाव से प्रभु ने उसे भी चतुर्भुज बनाया और निज धाम में दोनों को भिजवाया
अब प्रभु ने ग्वालबालों संग भोजन का आनंद लिया 

मुरली बजा गायों को समीप बुला लिया और वृन्दावन को प्रस्थान किया..!!

जय जय श्री राधे